राजनीति

औरंगाबाद क्षेत्र प्राचीन मगध जनपद का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा, माना जाता है राजपूतों का गढ़

औरंगाबाद
औरंगाबाद क्षेत्र प्राचीन मगध जनपद का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। कोलकाता को दिल्ली से जोड़ने वाली जीटी रोड शहर से होकर गुजरती है। देव स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर की वजह से भी औरंगाबाद देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। कभी औरंगाबाद का बड़ा भू-भाग नक्सलग्रस्त था। इसने कई नरसंहारों का दंश भी झेला। 26 जनवरी, 1973 को यह गया जिले से अलग होकर स्वतंत्र रूप से जिला बना। हालांकि लोकसभा क्षेत्र के रूप में यह 1957 में ही अस्तित्व में आ चुका था।

औरंगाबाद की देश व बिहार की सियासत में धाक रही है। अनुग्रह नारायण सिंह आजादी की लड़ाई के योद्धा रहे थे, जिन्हें बिहार विभूति की संज्ञा दी गई। आजादी के बाद वह बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे। उनके पुत्र सत्येंद्र नारायण सिन्हा मुख्यमंत्री और छह बार सांसद रहे। औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र को यूं ही मिनी चित्तौड़गढ़ नहीं कहा जाता है। यहां से दल भले ही कोई हो, राजपूत जाति के ही सांसद चुने जाते रहे हैं। इस गढ़ में पिछले एक दशक में सेंध लगाने की दो बार असफल कोशिश हुई। औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र शुरू में कांग्रेस का गढ़ रहा। यहां की राजनीति अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही। पहले सांसद सत्येंद्र नारायण सिन्हा उर्फ छोटे साहब थे जो अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र थे। कांग्रेस यहां से सात बार विजयी रही है।

13 बार दो परिवारों का परचम क्षेत्र की सियासत पर साढ़े तीन दशक से दो परिवारों का दबदबा रहा है। 1989 में रामनरेश सिंह उर्फ लुटन सिंह (जनता दल) ने सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पुत्रवधु श्यामा सिंह (कांग्रेस) को पराजित किया था। इसके बाद चुनाव में छोटे साहब और लुटन सिंह का परिवार आमने-सामने रहा। लूटन सिंह कभी छोटे साहब के नजदीकी थे। इन दो परिवारों ने 13 बार चुनाव में जीत हासिल की है। सत्येन्द्र नारायण सिन्हा यहां से पांच बार सांसद रहे। एक-एक बार उनके बेटे निखिल कुमार व बहू श्यामा सिंह जीतीं। राम नरेश सिंह दो बार और उनके बेटे सुशील सिंह चार बार सांसद चुने गए।

सुशील 1998 में पहली बार समता पार्टी से सांसद बने थे। 2019 के चुनाव में यहां से महागठबंधन की ओर से हम ने उपेंद्र प्रसाद को उतारा था पर वह हार गए। 1952 में औरंगाबाद गया पश्चिमी लोकसभा क्षेत्र में आता था। यहां से पहले सांसद सत्येंद्र नारायण सिन्हा बने। श्री सिन्हा 1957 में और 1971 से 1984 तक सांसद रहे। वे दो बार कांग्रेस तो दो बार जनता पार्टी के टिकट पर जीते। उनके बिहार की राजनीति में उतरने और विधायक बनने के बाद 1961 में रमेश सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने।

2019 में यह सीट भाजपा के खाते में गई थी। महागठबंधन से हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), सेक्युलर से उपेंद्र प्रसाद चुनाव लड़े थे। भाजपा की सीटिंग सीट होने की वजह से सांसद सुशील कुमार सिंह की दावेदारी है। कांग्रेस की परंपरागत सीट रहने की वजह से महागठबंधन से पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार दावा ठोक रहे हैं। इस बार एनडीए में भाजपा, जदयू और हम है। हालांकि, अभी उम्मीदवारों की घोषणा बाकी है। क्षेत्र की छह विधानसभा सीट में दो कांग्रेस, दो राजद और दो हम के पास है।

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