जिम्मेदारी मिलते ही दिग्गजों ने चुनावी जमावट के लिए बैठकें और मेल-मुलाकातों का दौर शुरू
भोपाल
भाजपा के आठ दिग्गजों की उम्मीदवारी वाली सीटों में से 6 पर कांग्रेस काबिज है। दिमनी, सतना, जबलपुर पश्चिम, निवास, गाडरवाड़ा और इंदौर 1 ऐसी सीटें हैं, जिन पर भाजपा को जीत हासिल करना है। चुनाव की जिम्मेदारी मिलते ही इन दिग्गजों ने अपनी सीटों पर चुनावी जमावट के लिए बैठकें और मेल-मुलाकातों का दौर शुरू कर दिया है।
दिमनी
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को जिस सीट से उतारा है। वह कभी भाजपा का गढ़ होती थी। इस सीट के बनने के बाद कांग्रेस को अपना खाता खोलने में 31 साल का समय लग गया था। यह सीट 1962 में बनी और कांग्रेस को पहली जीत 1993 में मिली थी। 2003 में भाजपा की संध्या राय यहां से जीती। 2008 भाजपा के ही शिवमंगल सिंह सुमन यहां से जीते। इसके बाद यह सीट एकदम से भाजपा पर भारी पड़ गई। तब से अब तक एक उपचुनाव मिलाकर कुल तीन चुनाव हुए, तीनों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। 2013 बलवीर सिंह दंडोतिया बसपा के टिकट पर जीते वहीं 2018 गिर्राज सिंह दंडौतिया कांग्रेस से जीते। दंडौतिया के भाजपा में शामिल होने के पर 2020 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के रविंद्र सिंह तोमर यहां से चुनाव जीते।
इंदौर-1
इंदौर की इस सीट से भाजपा ने अपने राष्टÑीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को मैदान में उतार दिया है। इस सीट से अभी कांग्रेस के संजय शुक्ला विधायक हैं। यह सीट भाजपा की मजबूत सीटों में शुमार मानी जाती रही है। इस सीट पर वर्ष 2003 में उषा ठाकुर जीती थी। इससे पहले यह सीट कांग्रेस के पास थी। वर्ष 2008 में भाजपा के सुदर्शन गुप्ता ने कांग्रेस के संजय शुक्ला को हराया था। वर्ष 2013 में इस सीट पर फिर से सुदर्शन गुप्ता चुनाव जीते थे। पिछले चुनाव में सुदर्शन गुप्ता को संजय शुक्ला ने हरा दिया था।
जबलपुर पश्चिम
इस सीट से सांसद राकेश सिंह को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। यह सीट भी पहले कांग्रेस का अभेद गढ़ रही है। 2013 से कांग्रेस के तरुण भनोत यहां के विधायक हैं। 1957 से लेकर 1985 तक इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1980 में यहां से चंद्रकुमार भनोत को टिकट दिया गया। वे दो चुनाव जीते। इसके बाद वर्ष 1990 में यह सीट जयश्री बनर्जी ने कांग्रेस से छीन कर भाजपा की झोली में डाली। वे दो बार विधायक रही। उनके बाद इस सीट पर भाजपा ने हरिंदरजीत सिंह बब्बू को टिकट दिया और वे तीन चुनाव लगातार जीते।
निवास
इस सीट से केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते भाजपा उम्मीदवार बने हैं। यह सीट हमेशा से ही कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस के पास आती रही है। इस सीट पर जनसंघ के उम्मीदवार भी दो बार जीते हैं। 1990 में यह सीट भाजपा की पास आई, इस सीट पर फग्गन सिंह कुलस्ते ही जीते थे। 2003 में यहां से भाजपा के टिकट पर फग्गन सिंह के भाई रामप्यारे कुलस्ते जीते, 2008 और 2013 में भी वे ही चुनाव जीते थे। वर्ष 2018 में यह सीट कांग्रेस के पास वापस आई। यहां से कांग्रेस के टिकट पर डॉ. आशोक मर्सकोले जीते थे।
गाडरवारा
इस सीट से भाजपा ने सांसद उदय प्रताप सिंह को चुनाव में उतारा है। वर्तमान में यहां से कांग्रेस की सुनीता पटेल विधायक हैं। यह सीट कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा के पास रहती है। पिछले चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की सुनीता पटेल जीती थी। इससे पहले यह सीट भाजपा के पास थी, वर्ष 2013 के चुनाव में कांग्रेस यहां पर तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। इससे पहले वर्ष 2008 के चुनाव में भी यहां से कांग्रेस की साधना स्थापक विधायक बनी थी। इसी तरह वर्ष 2003 में भाजपा के गोविंद सिंह पटेल चुनाव जीते थे। इससे पहले साधना स्थापक विधायक बनी थी।
सतना
इस सीट से सांसद गणेश सिंह को मैदान में भाजपा ने उतारा है। इस सीट पर वर्तमान में कांग्रेस का कब्जा है। यहां से सिद्धार्थ कुशवाह विधायक हैं। ब्राह्मण बाहुल्य मतदाताओं वाली सीट पर भाजपा पहली बार 1990 में जीती थी। इसके बाद कांग्रेस और भाजपा के पास आती जाती रही। यह सीट 1967 से लेकर 1985 तक कांग्रेस के पास रही। वर्ष 1990 में भाजपा के बृजेंद्र पाठक ने इस सीट को जीता था। वे दो बार विधायक रहे। वर्ष 2003 में यहां से शंकर लाल तिवारी चुनाव जीते थे। तिवारी यहां से 2008 और 2013 में भी चुनाव जीते। वर्ष 2018 में यह सीट कांग्रेस सिद्धार्थ कुशवाह ने शंकर लाल तिवारी को हराकर जीत ली थी। इस बार शंकर लाल तिवारी का टिकट कट गया है।