अपनी गलती मानकर बुरे फंसे PM प्रचंड, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दर्ज करने का दिया आदेश
नेपाल
नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' की मुश्किलें बढ़ गई हैं। संसद में नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी द्वारा अपनी सरकार से अपना समर्थन वापस लेने के बाद राजनीतिक अस्थिरता के बीच, माओवादी प्रमुख और नेपाल के प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहल को एक और संकट का सामना करना पड़ा है। उनके खिलाफ सामूहिक हत्या का मामला दर्ज करने का न्यायिक आदेश दिया गया है, जिससे उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ सकती है।
दुनिया की सबसे खूबसूरत महिलाएं 2022L&C Magazine नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने प्रशासन को एक दशक पुराने विद्रोह के दौरान 5 हजार लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रधानमंत्री प्रचंड के खिलाफ एक रिट याचिका दर्ज करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन के उनकी याचिकाओं को खारिज करने के फैसले के खिलाफ दो अधिवक्ताओं द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और हरि प्रसाद फुयाल की खंडपीठ ने शुक्रवार को अदालत प्रशासन को याचिका दर्ज करने का आदेश दिया। प्रशासन के फैसले को किया रद्द काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बिमल पौडेल ने कहा कि शुक्रवार को खंडपीठ ने याचिकाओं को दर्ज नहीं करने के प्रशासन के फैसले को रद्द कर दिया।
पीड़ितों ने मांग की थी कि अदालत पीएम प्रचंड के खिलाफ उन सामूहिक हत्याओं के लिए आवश्यक कानूनी कार्रवाई करे, जो उसमें वह खुद शामिल थे। संघर्ष के पीड़ित वकील ज्ञानेंद्र आराण और कल्याण बुधाठोकी ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं लेकिन अदालत के प्रशासन ने पिछले साल 10 नवंबर को उन्हें दर्ज करने से मना कर दिया था। खुद ही 5 हजार मौतों की ली जिम्मेदारी आपको बता दें कि नेपाल में माओवादियों का राजशाही के खिलाफ विद्रोह 13 फरवरी 1996 में शुरू हुआ था। यह विद्रोह 21 नवंबर 2006 को सरकार के साथ व्यापक शांति समझौता होने के बाद आधिकारिक तौर पर खत्म हो गया था। एक दशक के इस संघर्ष में कई हजार लोगों की मौत हुई थी। कुछ साल पहले प्रचंड ने काठमांडू में एक कार्यक्रम में कहा था,'मुझपर 17000 लोगों की हत्या का आरोप लगाया जाता है, जो सच नहीं है। उन्होंने कहा था अगर आप मुझे 5,000 मारे गए लोगों की जिम्मेदारी सौंपते हैं, तो यह मेरा नैतिक दायित्व है कि मैं उन मौतों की जिम्मेदारी लूं। जा सकती है पीएम पद की कुर्सी प्रचंड ने कहा था कि वह इससे भाग नहीं सकते लेकिन जो उन्होंने नहीं किया उसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जाना चाहिए।
उन्होंने 5,000 लोगों की मौत की जिम्मेदारी लेते हुए बाकी 12,000 मौतों की जिम्मेदारी सामंती सरकार को लेनी चाहिए। उनकी इस बात से हंगामा मच गया। प्रचंड ने 'जनयुद्ध' के नाम पर एक दशक तक सशस्त्र संघर्ष चलाया था इसके बारे में सभी को पता था लेकिन खुद ही यह बात कबूलने पर उनकी मुश्किलें बढ़ गईं। इसके बाद पीड़ितों ने मांग की, कि अदालत प्रचंड के खिलाफ उन हत्याओं के लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई करे, जो उन्होंने खुद स्वीकार की हैं।