राजनीति

राजनीति में उठा तूफान हुआ शांत : पवार की पलटी भतीजे अजित के मंसूबों पर फेरा पानी

 मुंबई

महाराष्ट्र की राजनीति में उठा एक तूफान शांत हो गया है। कद्दावर नेता शरद गोविंदराव पवार ने बतौर एनसीपी अध्यक्ष अपना इस्तीफा वापस ले लिया है। उनके भतीजे अजीत पवार सहित उनकी पार्टी ने उनके नेतृत्व का समर्थन किया है। पार्टी में कोई भी शरद पवार का जगह लेने के लिए तैयार नहीं हुआ। प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, जयंत पाटिल यहां तक कि उनकी बेटी सुप्रिया सुले भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अपने पिता का जगह लेने के लिए तैयार वहीं हुईं।

शरद पवार के द्वारा इस्तीफा वापस लेने के ऐलान को अजीत पवार के लिए एक झटके के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि अजीत पवार ही अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने खुले तौर पर और सार्वजनिक रूप से शरद पवार के इस्तीफे को स्वीकार करने के पक्ष में बात की थी। उन्होंने इसके लिए उनकी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला दिया था।

कुछ हफ्ते पहले जब प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा अजीत पवार को क्लिन चिट दिया तो कयासों का दौर शुरू हुआ। यह एक रहस्य अभी भी बना हुआ है कि अजीत पवार महाराष्ट्र में भाजपा सरकार में शामिल होने के बारे में विचार कर रहे थे। उनके साथ एनसीपी के कुछ विधायक भी जाने की तैयारी में थे। इस बात की भी चर्चा थी कि उन्हें भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री पद की पेशकश की गई थी। कई नेताओं ने शरद पवार को भी यह समझाने की कोशिश की कि पार्टी के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि महाराष्ट्र में भाजपा को समर्थन दे। लेकिन शरद पवार ने साफ कह दिया था कि वह कहीं जाने के मूड में नहीं हैं।

महाराष्ट्र में भाजपा की नजरें दो क्षेत्रीय दलों पर है। शिवसेना के तोड़ने में तो भगवा पार्टी सफल रही। इसके बाद एनसीपी को भी कमजोर करने की कोशिश की गई। लेकिन शरद पवार के ने एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर एक बहुत ही बड़ा इमोशनल कार्ड खेल दिया। एनसीपी के कई विधायक ईडी की दस्तक से डरते हैं, लेकिन वे शरद पवार की नाराजगी का जोखिम भी नहीं उठाना चाहते हैं। उनके पास अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने की भी चुनौती है।

अजीत पवार भले ही भाजपा के पास चले जाएं, एनसीपी कार्यकर्ता और समर्थकों की सहानुभूति शरद पवार के साथ अधिक होने की संभावना है। अजीत पवार संगठन के आदमी हैं, मेहनती भी हैं और कई विधायक उनके प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं। लेकिन क्या वह अपने चाचा को चुनौती दे पाएंगे, फिलहाल इसका अंदाजा किसी को नहीं है।

सबकी निगाहें एकनाथ शिंदे समेत शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता मामले में सुप्रीम कोर्ट के कुछ दिनों में आने वाले फैसले पर टिकी हैं। विधायकों की अयोग्यता के बाद भी सरकार के पास बहुमत होगा। लेकिन बीजेपी की निगाहें 2024 पर ज्यादा हैं।

 

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