देश

क्या India अंग्रेजों का दिया हुआ नाम? इंडिया और भारत की बहस के बीच इतिहासकारों की राय जानें

 नई दिल्ली

भारत बनाम इंडिया को लेकर चल रहे राजनीतिक विवाद के बीच इतिहासकार भी अपनी राय जाहिर कर रहे हैं। इतिहासकारों के एक वर्ग ने शनिवार को कहा कि ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी के ग्रीक मूल वाले 'इंडिया' शब्द का अंग्रेजों से कोई वास्ता नहीं है। उन्होंने इसे औपनिवेशिक अतीत का अवशेष बताने वाली दलीलों को खारिज कर दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद एक में 'इंडिया और भारत' दोनों नामों का 'इंडिया, दैट इज भारत…' के रूप में उल्लेख है। दोनों देश के इतिहास का हिस्सा हैं और 'पूरी तरह से वैध' हैं।

इतिहासकार एस. इरफान हबीब ने कहा, 'ब्रिटिश का इंडिया नाम से कोई वास्ता नहीं है। यह ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी से हमारे इतिहास का हिस्सा है। यूनानियों ने इसका इस्तेमाल किया, फारसियों ने इसका इस्तेमाल किया। भारत की पहचान सिंधु नदी के उसपार स्थित देश के रूप में की गई। यह (नाम) वहां से आया।' उन्होंने कहा कि कई ऐतिहासिक स्रोत, मेगस्थनीज (यूनानी इतिहासकार) और कई यात्री इसका जिक्र करते हैं। इसलिए भारत की तरह ही इंडिया भी हमारे इतिहास का हिस्सा है।'

इतिहासकार इरफान हबीब की राय
नई दिल्ली में शनिवार को आयोजित जी20 के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान 'भारत' का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर पेश की गई। इससे पहले, जी20 के प्रतिनिधियों और अन्य अतिथियों को 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' के नाम से न्योता भेजा गया जिसे लेकर विवाद पैदा हो गया। विपक्षी दलों ने दावा किया कि सरकार देश के नाम से 'इंडिया' को हटाना चाहती है। इरफान हबीब कहते हैं, 'इंडिया नाम को ब्रिटिश के साथ जोड़ना कोरा झूठ है और उन्हें सत्तारूढ़ दल द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किए जाने के दौरान किए गए 'झूठे दावों' की याद दिलाता है। उन्होंने दलील दी कि राजपथ के 'राज' का ब्रिटिश 'राज' से कोई वास्ता नहीं है और वह शासन के संदर्भ में है।

'झूठ बोल रहे, जैसे राजपथ के बारे में बोला'
70 वर्षीय इतिहासकार ने कहा, 'वे झूठ बोल रहे हैं, वैसे ही जैसा राजपथ के बारे में बोला था। यह किंग्सवे और क्वीन्सवे था जिन्हें आजादी के तुरंत बाद क्रमश: राजपथ और जनपथ नाम दिया गया।' राजपथ दिल्ली के रायसीना हिल्स को इंडिया गेट से जोड़ता है। पिछले साल सितंबर में इसे कर्तव्य पथ नाम दिया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के हिस्से के रूप में इसका उद्घाटन किया। वहीं, इतिहासकार सलील मिश्रा भी हबीब की दलीलों से इत्तेफाक रखते हैं। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से कम से कम 5 नामों… भारत, इंडिया, हिंदुस्तान, जम्बूद्वीप और आर्यावर्त… का उपयोग इस भूमि को भौगोलिक, पारिस्थितिक, जनजातीय, सामुदायिक आधार और अन्य आधार पर नामित करने के लिए किया गया है।

इतिहासकार सलील मिश्रा ने क्या कहा
सलील मिश्रा ने कहा, 'मैं कहूंगा कि यह भारत के लंबे, विविध और समृद्ध इतिहास का ही संकेत है। यह मुठभेड़ों का इतिहास है, संपर्कों का इतिहास है, संचार, संवादों का इतिहास है और इन संवादों के कारण ही कई अलग-अलग नाम आए हैं।' उन्होंने कहा, 'बेशक, विश्व स्तर पर इंडिया और भारत व्यापक रूप से उपयुक्त शब्द हैं और दोनों का अपना इतिहास है। ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम एक को दूसरे पर विशेषाधिकार दे सकें, और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे मैं, एक इतिहासकार के रूप में, एक को श्रेष्ठ और दूसरे को निम्न मान सकूं।' 'इंडिया, दैट इज भारत' पर बहस कोई नई बात नहीं है क्योंकि 18 सितंबर, 1949 को एक चर्चा के दौरान संविधान सभा के विभिन्न सदस्यों… जिनमें एच. वी. कामथ, हरगोविंद पंत, कमलापति त्रिपाठी शामिल थे.. ने दलीलें देते हुए इसे अलग तरीके से प्रस्तुत करने की मांग की थी।

'इंडिया डैट इज भारत…' पर बनी सहमति
कामथ ने हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष जैसे नाम सुझाए; कांग्रेस सदस्य हरगोविंद पंत ने इंडिया के स्थान पर भारत और भारतवर्ष नाम रखने की वकालत की। संविधानसभा की बहस के दौरान कांग्रेस के एक अन्य नेता कमलापति त्रिपाठी ने कहा, 'हमारे समक्ष प्रस्तुत प्रस्ताव में 'भारत दैट इज इंडिया' का उपयोग ज्यादा उचित होता।' आखिरकार संविधानसभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने कामथ की ओर से प्रस्तावित संशोधन को मतदान के लिए रखा और अनुच्छेद एक 'इंडिया डैट इज भारत…' ही बना रहा।

 

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button