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G-20 में PM मोदी का मास्टरस्ट्रोक, 54 अफ्रीकी देशों पर खेला दांव

नईदिल्ली
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई वैश्विक व्यवस्था बनाने की दिशा में एक बड़ा और बहुत प्रभावी कदम उठाया है। दुनिया के 20 अमीर और विकासशील देशों के संगठन जी-20 में अफ्रीकी संघ (AU) के 54 देशों को स्थायी सदस्यता देने की जोरदार वकालत की है। इसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दुनिया में भारत की बेहद सटीक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने 9-10 सितंबर को नई दिल्ली में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी संघ को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। भारत ने जी-20 के सदस्यों से अपील की है कि वो तेजी से विकसित अर्थव्यवस्था के रूप में एयू को पूर्ण सदस्यता दी जाए। यूके, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने भारत के प्रस्ताव का दिल खोलकर समर्थन किया है। वहीं, जी-20 के 11 सदस्यों ने केवल मौखिक समर्थन दिया है, जिनमें से अधिकांश यूरोपीय संघ के देश हैं।

 

भारत की यह चाल चीन को चुभ तो बहुत रही होगी

खनिज संसाधनों से समृद्ध इस महाद्वीप को अपनी अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के लिए मार्गदर्शन और समर्थन की जरूरत है। आज अफ्रीका के संसाधनों पर चीन जैसे देशों की निगाहें गड़ी हुई हैं जो विकास में मदद के नाम पर कर्ज के जाल में फंसते हैं और फिर वहां के संसाधनों का दोहन करते हैं। स्वाभाविक है कि एयू को जी-20 का स्थायी सदस्य बनाने के भारत के प्रस्ताव पर ऐसे सदस्य देशों ने आपत्ति जताई है जिसमें चीन भी शामिल है। हालांकि, भारत इस बात को लेकर आश्वस्त है कि 54 देशों के प्रभावशाली समूह अफ्रीकी संघ को जी-20 में स्थायी सदस्यता दी जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के प्रधानमंत्रियों को पत्र लिखकर अफ्रीकी संघ को समूह की पूर्ण सदस्यता देने का प्रस्ताव रखा था। उनके प्रस्ताव को व्यापक समर्थन मिला लेकिन कुछ देशों ने कुछ आपत्तियां दर्ज करवाईं।

जी-20 में एयू को स्थायी सदस्य के रूप में शामिल किए जाने को लेकर भारत ने आम सहमति बनाने की कोशिश तो चीन ने अड़ंगा डाल दिया। सूत्रों ने कहा कि बीजिंग ने भारत द्वारा आम सहमति के लिए जोर दिए जा रहे कई मुद्दों पर आपत्ति जताई है, जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम, महिला प्रधान विकास, डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली (LiFe) शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, चीन अन्य सदस्य देशों को भारत के प्रस्तावों को रोकने या मुद्दों को ब्राजील की अगली अध्यक्षता आने तक टालने को उकसा रहा है।

भारत का यह कदम अफ्रीकी देशों पर बहुत गहरा असर डालेगा जो बहुत हद तक चीन के पाले में जाता दिख रहा है। जी-20 की सदस्यता मिलने से अफ्रीकी देशों को आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर अपनी राय दृढ़ता से रखने का अवसर मिलेगा। दरअसल, उभरती हुई अफ्रीकी अर्थव्यवस्था का फायदा उठाने के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा हो रही है। भारत ही नहीं, चीन, यूरोप और अमेरिका जैसे देश, अफ्रीकी देशों के सरकारों को जीतने की रेस में जुटे हैं। हालांकि, अफ्रीकी देशों के साथ संबंध को लेकर चीन और भारत के नजरिए में बहुत अंतर है। भारत अपने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) कार्यक्रम के जरिए अफ्रीकी देशों के अपने पांव पर खड़ा करने में जुटा है जबकि चीन वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों के लिए कर्जदाता की भूमिका निभा रहा है, इस लालच में कि कर्ज नहीं चुकाने की स्थिति वह अफ्रीकी देशों को अपना उपनिवेश बना सकेगा।
अफ्रीका में भारत के लिए अपार संभावनाएं

भारत की पहल पर जी-20 के अन्य सदस्यों ने अफ्रीका की समृद्धि में योगदान दिया तो निश्चित रूप से वह दुनिया के लिए एक बड़े बाजार के रूप में उभर सकता है जिसका सीधा फायदा भारत को भी होगा। अफ्रीका के 54 देशों में निर्यात के मौके से भारत की अर्थव्यवस्था को पंख लग सकते हैं। अभी जी-20 के सदस्य वैश्विक अर्थव्यवस्था का 60 प्रतिशत हिस्सा हैं और अगर अफ्रीका को भी शामिल किया जाए तो यह बढ़कर 80 प्रतिशत हो जाएगा। भारत सरकार ने 2003 में ही 'फोकस अफ्रीका कार्यक्रम' शुरू किया था।

बीते मई मीहने में भारत के एग्जिम बैंक ने भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के सहयोग से एक भारत-अफ्रीका सम्मेलन का आयोजन किया। एयू की वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक लाख करोड़ डॉलर से अधिक है जो यूरोप के भौगोलिक आकार के लगभग बराबर है। एक-एक अफ्रीकी देश एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभर सकते हैं। भारत की जीडीपी उससे लगभग तीन गुना बड़ी है, जो भारतीय और विकसित अर्थव्यवस्थाओं को अपना व्यापार बढ़ाने का अवसर देता है।
 

भारत-अफ्रीका संबंधों का लंबा इतिहास

भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और प्रौद्योगिकी (Technology) आदि के क्षेत्र में लंबे समय से सहयोग का इतिहास रहा है। भारत का एयू के जी-20 के प्रस्ताव का समर्थन करना इस साझेदारी का एक स्वाभाविक परिणाम है। यह केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि रणनीतिक है। यह भारत की अफ्रीकी देशों के साथ संसाधनों और ज्ञान को साझा करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह बढ़ती अर्थव्यवस्था और जियो-पॉलिटिक्स में बढ़ते दबदबे के कारण भारत की ऊंची होती हैसियत का प्रतीक है। भारत का एयू को मिला समर्थन ब्रिक्स के देशों को भी बड़ा संदेश देगा।

अफ्रीका संयुक्त राष्ट्र (UN) की सत्ता के गलियारों में एक विशेष महत्व रखता है। भारत का अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2022 में 9.26 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 100 अरब डॉलर हो गया, जबकि चीन का अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 272 अरब डॉलर है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि चीन का अफ्रीका में आर्थिक प्रभाव भारत से कहीं अधिक गहरा है। हालांकि, अगर अफ्रीका को जी-20 में शामिल किया जाता है, तो भारत अपने अफ्रीकी भागीदारों के साथ संबंध को बेहतर बना सकता है।
 

वर्ल्ड लीडर के रूप में भारत की एक और गहरी छाप

भारत का अफ्रीकी संघ को शामिल करने का प्रस्ताव उस समय आया है जब देश जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। भारत ने इसे अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने और जी-20 को ज्यादा विविध और व्यापक बनाने का अनूठा अवसर के रूप में भुना लिया है। भारत के इस कदम से वैश्विक व्यवस्था में बड़े बदलाव की राह मजबूत होगी। इसमें दो राय नहीं कि दुनिया के दक्षिणी भाग में स्थित देशों की हैसियत बढ़ेगी तो उन्हें जी-20 जैसे समूहों में शामिल करना एक रणनीतिक कदम ही होगा।

भारत का अफ्रीकी संघ के जी-20 में प्रवेश की वकालत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक ऐतिहासिक क्षण है। इससे न केवल एयू की दावेदारी बल्कि वर्ल्ड लीडर के रूप में भारत की स्थिति को भी मजबूती मिलती है। इस कदम से बेहद उदार और सबको साथ लेकर चलने वाले देश के रूप में भारत की दावेदारी को और ताकत मिलेगी जो ज्यादा समावेशी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की वकालत करता है। यह जी-20 के लक्ष्य के अनुकूल भी है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास करता है।

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