बिलासपुर
साहित्य के प्रसार-प्रचार तथा पहचान को कायम रखने के प्रयास स्वरूप अमृता प्रीतम की 104वीं जयंतीदक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में मनाई गई। आज दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के जनसम्पर्क विभाग ने उनकी जयंती को ऑनलाइन मनाया। इस अवसर पर हिंदी एवं पंजाबी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृता प्रीतम को याद करने के लिए रेलवे से जुड़े साहित्यकार ऑनलाइन शामिल हुए। अमृता प्रीतम का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता था। उनकी सुप्रसिद्ध कहानी लटिया की छोकरी व गांजे कि कली इसी क्षेत्र से संबन्धित कहानी है। ज्ञात हो कि लटिया दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का एक स्टेशन भी है जो जयरामनगर के पास है।
मुख्य जन संपर्क अधिकारी साकेत रंजन ने अमृता प्रीतम को याद करते हुये उन्हें प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार बताया, जो 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री थीं। उनका जन्म 31 अगस्त 1919 को गुजरांवाला, पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। अमृता की कलम से उतरे शब्द ऐसे हैं जैसे चांदनी को अपनी हथेलियों के बीच बांध लेना। समाज की तमाम बेडियों को तोड़कर खुली हवा में सांस लेने वालीं, आजाद ख्यालों वालीं अमृता प्रीतम पंजाब की पहली कवियत्री थी। 100 से ज्यादा किताबें लिख चुकीं अमृता को देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण मिला था। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 1986 में उन्हें राज्यसभा के लिए नॉमिनेट किया गया था। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया।
ऑनलाइन जुड़े रेलवे सुरक्षा बल के वरिष्ठ अधिकारी श्री कुमार निशांत ने अमृता प्रीतम को याद करते हुये बताया कि अमृता प्रीतम खुली और बंद आँखों से सपने देखती थीं। सपनों को वे आध्यात्मिक अनुभूति से जोड़ती हैं। उनकी एक प्रसिद्ध कविता है नौ सपने, इसमें छोटी-छोटी नौ कविताएँ हैं। इन कविताओं में वे अपनी कोख की हलचल और अपने प्रथम जापे की बात करती हैं। मातृत्व को गरिमा प्रदान करती हुई वे लिखती हैं, जब कोख में कोई नीड़ बनता है, यह कैसा जप? कैसा तप कि माँ को ईश्वर का दीदार कोख में होता है उन्हें अपनी कोख में हँस का पंख हिलता हुआ लगता है, गरी का पानी दूध की तरह टपकता है।
ऑनलाइन जुड़े राजभाषा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी श्री विक्रम सिंह ने कहा किअमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट बेहद चर्चित है। अमृता प्रीतम का जीवन कई दुखों और सुखों से भरा रहा। उदासियों में घिरकर भी वो अपने शब्दों से उम्मीद दिलाती हैं। जब वो लिखतीहैं – दुखांत यह नहीं होता कि जिंदगी की लंबी डगर पर समाज के बंधन अपने कांटे बिखेरते रहें और आपके पैरों से सारी उम्र लहू बहता रहे। दुखांत यह होता है कि आप लहू-लुहान पैरों से एक उस जगह पर खड़े हो जाएं, जिसके आगे कोई रास्ता आपको बुलावा न दे।
कई अन्य साहित्यकार ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुये उनकी कविताओं तथा कहानियों का वाचन किया। उनकी कहानी लटिया की छोकरी, शाह की कंजरीयह कहानी नहीं एक जीवी, एक रत्नी, एक सपना गुलियाना का एक खत, छमक छल्लो, पाँच बहनें, जरी का कफन तथा कविताओं में एक मुलाकात, एक घटना, खाली जगह, पहचान, कुफअज्ज आखां वारिस शाहू नूँझ् का सस्वर पाठ किया गया।