50 जिलों में स्वास्थ्य कर्मचारियों के भविष्य पर, अंधकार दो जिलों में खुलकर लुटाया प्यार
कंपाउंडर महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के साथ औषधालय सेवक संकट में
भोपाल
आयुष विभाग के अधीन संचालित औषधालयों में पैरा मेडिकल स्टाफ को सरकार ने एक प्रकार से अपने हाल पर छोड़ दिया है। 50 जिले ऐसे हैं जहां इन कर्मचारियों का भविष्य एक प्रकार से अंधकार में डाल दिया गया है। जबकि झाबुआ एवं खरगोन जिले में इसी संवर्ग के सेवकों को किस नियम के तहत प्रथम नियुक्ति दिनांक से वेतनमान की सौगात दी गई है। अन्य जिलों के कर्मचारी यह सवाल विभाग पर उठा रहे हैं। जबकि कर्मचारी यह तर्क भी दे रहे हैं कि जब पूरे राज्य में एक समान काम की गति में रहते हुए पीड़ित मरीजों का उपचार किया जा रहा है तो फिर आखिर दो जिलों की कर्मचारियों पर कैसे खुलकर प्यार लुटाया गया है। आरोप यह भी है कि अफसरों ने अपनी निजी स्वार्थ को सिद्ध करते हुए ऐसे आदेश जारी कर सरकार की छवि को खराब करने की कोशिश की है।
संविदा आधार पर दी गई थी नियुक्तियां: सरिता द्विवेदी
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता सरिता द्विवेदी का कहना है किइ न कर्मचारियों के लिए नियमित वेतनमान के पद रिक्त थे। वर्ष 1999 में पंचायती राज अधिनियम लागू होने से और औषधालयों में रिक्त पदों पर जिला पंचायत कार्यालय द्वारा उन नियमित वेतनमानों की रिक्त पदों के विरुद्ध निश्चित संविदा वेतन पर नियुक्तियां दी गई। नियुक्त कर्मचारियों द्वारा निरंतर नियमित वेतनमान की मांग की जाती रही थी। शासन द्वारा वर्ष 2009 में संविदा कर्मचारियों को नियमित वेतनमान दिया गया। प्रथम नियुक्ति दिनांक से निमित्त वेतनमान दिए जाने की संघ द्वारा पूर्व से ही मांग की जाती रही है। जिस पर शासन द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया है। कुछ कर्मचारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आज दायर की गई थी। जिला खरगोन झाबुआ एवं कुछ अन्य जिलों में लगभग 100 कर्मचारियों को प्रथम नियुक्ति दिनांक से नियमित वेतनमान दिया जा रहा है। शेष कर्मचारियों के संबंधित विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
वर्ष 2017 से लगातार दिए जा रहे हैं पत्र : गिरीश चतुर्वेदी
राज आयुष कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश चतुर्वेदी कहते हैं कि आयुष कर्मचारी संघ द्वारा वर्ष 2017 से मांगों के निराकरण हेतु निरंतर विनय पत्र प्रस्तुत किए जा रहे। किंतु आज दिनांक तक आयुष कर्मचारियों की मांगों का कोई निराकरण नहीं किया गया है। जिससे निराशा की स्थिति बनी हुई है। विभाग में पदस्थ महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता चतुर्थ श्रेणी को पूर्व की भांति तृतीय श्रेणी में सम्मिलित किया किया जाना था। क्योंकि पूर्व में जो नियुक्ति की जाती थी। तब शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास निर्धारित थी। उसके बाद जो नियुक्तियां हुई। उसमें निर्धारित योग्यता 10वीं एवं 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण के साथ 1 वर्ष का तकनीकी प्रशिक्षण होना आवश्यक था। उसके पूर्व में जो नियुक्तियां की गई। वह आठवीं पास थी।
योग्यता बदलने से नहीं मिला सम्मान: मनोज शर्मा
संगठन के प्रदेश मंत्री मनोज शर्मा का कहना है कि वर्ष 1980 में एवं वर्ष 2002 में तृतीय श्रेणी संवर्ग में यह कर्मचारी आते थे। इसके बाकायदा विभाग द्वारा आदेश जारी किए गए थे। आरोप है कि जब से विभाग के द्वारा इस पद की योग्यता 10वीं 12वीं के साथ एक वार्षिक तकनीकी डिप्लोमा की गई। तब से आज तक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता चतुर्थ श्रेणी संपर्क में आती है। जो इन कर्मचारियों के साथ नैसर्गिक न्याय नहीं है।