संतान प्राप्ति में बाधा हो तो देव मार्कण्डेय मंदिर में करें पूजा, चतुर्मुख शिवलिंग के करें दर्शन
पटना
बिक्रमगंज अनुमंडल में देव मार्कण्डेय गांव में स्थापित सूर्य मंदिर काफी विख्यात है। नि:संतान दंपती यहां पुत्र प्राप्ति के लिए पहुंचते हैं। देव मार्कण्डेय गांव में स्वयंभू शिवलिंग भी है। वहीं नंदी, एकमुखी शिवलिंग, चतुर्मुख शिवलिंग, पार्वती व उमा-माहेश्वर की प्रतिमा भी स्थापित है। देव मार्कण्डेय में विष्णु, दुर्गा, चामुंडा, सरस्वती और गणेश की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। अंग्रेजों की छावनी के लिए भी देव मार्कण्डेय को जाना जाता है। हालांकि, गांव वाले इस बात को नकारते हैं, लेकिन फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने अपने दौरा के बाद अपनी डायरी में अंग्रेजी छावनी होने की बात लिखी है। वहीं राजा-महाराजाओं के राजमहल का अवशेष होने की भी गांवों में चर्चा है।
छठ में दूसरे राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
देव मार्कण्डेय काराकट प्रखंड मुख्यालय से आठ किमी की दूरी पर स्थित है। पंचायत और गांव का नाम देव है, लेकिन गांव में विष्णु भगवान की प्रतिमा मिलने के बाद इसे देव मार्कण्डेय के नाम से भी जाना जाता है। गांव में अति प्राचीन पौराणिक सूर्य मंदिर है। छठ पर्व के दौरान देव मार्कण्डेय गांव में स्थापित सूर्य मंदिर की खूबसूरती देखते बनती है। प्राचीन सूर्य मंदिर के पास सदियों पुराना तालाब भी स्थित है। तालाब का उल्लेख कई ऐतिहासिक किताबों में है। छठ पर्व के दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु अर्घ्य देने यहां पहुंचते हैं। दूसरे राज्यों से छठ करने आने वाले श्रद्धालु घाट पर ही रात में रुकते हैं। सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद श्रद्धालु वापस जाते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए पहुंचे हैं श्रद्धालु
मान्यता है कि यहां पर छठ पर्व के दौरान छठ कर मनौती मांगने से भगवान भास्कर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। जिस कारण नि:संतान दंपती यहां संतान की प्राप्ति के लिए छठ करने पहुंचते हैं। संतान प्राप्ति के बाद फिर से श्रद्धालु यहां पहुंच कर छठ करते हैं।
गुप्त काल की मूर्ति हैं स्थापित
प्राचीन सूर्य मंदिर में स्थापित मूर्ति गुप्त काल की बताई जाती है। फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने भी इसकी पुष्टि की है, वहीं कई अन्य ऐतिहासिक किताबों में भी देव मार्कण्डेय गांव में स्थित मंदिर को पौराणिक स्थल बताया गया है। मान्यता है कि मंदिर से कुछ ही दूरी पर राजमहल हुआ करता था। जिसका अवशेष अभी भी मिलता है, वहीं ग्रामीण बताते हैं कि मंदिर राजा फूलचंद चेरों की पत्नी गोभाविनी ने पूजा करने के लिए बनवाया था।
कृष्ण के पुत्र से भी जुड़ी हैं कहानियां
मंदिर को कृष्ण के पुत्र से भी जोड़कर कहानियां सुनाई जाती हैं। ग्रामीण बताते हैं कि कृष्ण के पुत्र ने मंदिर का निर्माण करवाया था, वहीं पूर्णमासी की रात मंदिर के पास लाल रोशनी नजर आने की चर्चा होती है, लेकिन, पास जाने पर निकल रही लाल रोशनी समाप्त हो जाती है। हालांकि, अब तक इसका कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है। वहीं गांव में मंदिर निर्माण को लेकर अन्य राजाओं से भी जुड़ी हुई कहानियां प्रचलित हैं।
स्वयंभू शिवलिंग के लिए भी है प्रचलित
गांव में सूर्य मंदिर के अलाव स्वयंभू शिवलिंग के लिए भी विख्यात है। बताया जाता है कि यहां पर स्थित शिवलिंग काफी प्राचीन है। उक्त शिव लिंग मानव निर्मित नहीं बल्कि स्वयंभू है। सावन में कांवरिये जल चढ़ाने पहुंचते हैं। वहीं महाशिवरात्रि में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। इतिहासकार डॉ़क्टर श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि देव मार्कण्डेय का मंदिर पंचायतन मंदिरों का रूप था। बाद में यहां सूर्यकूंड की भी स्थापना की गई। यहां की प्रतिमाएं गुप्तकाल से लेकर पूर्व मध्यकाल तक की हैं। पहले यह स्थान शैव केंद्र था, बाद में यह सूर्य देव का हो गया। बाद यह स्थान विष्णु, गणेश व देवी को समर्पित हो गया।