राजनीति

BRS के लिए भी आसान नहीं डगर तेलंगाना की, कांग्रेस के बाद BJP भी दे रही चुनौती

तेलंगाना
तेलंगाना में इस बार विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष के आसार है। सत्तारूढ़ बीआरएस के लिए कांग्रेस के साथ भाजपा भी कड़ी चुनौती पेश कर सकती है। बीते लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने यहां पर काफी काम किया है और कुछ अहम सफलताओं के साथ वोट भी बढ़ाया है। वहीं कांग्रेस को कई झटके लगे हैं।

इन पांच वर्षों में एक बड़ा बदलाव सत्तारूढ़ दल के नाम में बदलाव का भी आया है और टीआरएस (तेंलगाना राष्ट्र समिति) अब बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) बन गई है। आंध्र में तेलंगाना की मांग का नेतृत्व करने के बाद राज्य के विभाजन के बाद अस्तित्व में आए तेलंगाना में बीआरएस का अभी तक एकतरफा राज चल रहा है। उसकी ताकत के सामने विरोधी कमजोर रहे हैं, पर अब हालात वैसे नहीं है।

बीते आम चुनाव में भाजपा ने चार सीटें जीतकर अपनी जगह बनानी शुरू की थी। उसने दूसरे दलों के कई नेताओं को भी साथ जोड़ा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 119 सीटों में टीआरएस को 88, कांग्रेस को 19, एआईएमआईएम को सात, तेलुगुदेशम को दो, भाजपा को एक, फारवर्ड ब्लॉक को एक और निर्दलीय को एक सीट मिली थी। दल-बदल, इस्तीफों व उपचुनाव से वर्तमान में बीआरएस के 103, एआईएमआईएम के सात, कांग्रेस के पांच, भाजपा के दो व निर्दलीय एक विधायक हैं।

बीआरएस ने रणनीति में बदलाव किया
तेलंगाना में इस समय बीआरएस काफी संभल कर चल रही है। उसने विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस से भी दूरी बनाकर रखी है। यही वजह है कि वह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल नहीं हुई है। भाजपा से उसकी दूरी पहले से ही है। इसके पहले बीआरएस नेता मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने खुद ही देश भर में विभिन्न दलों के नेताओं से मुलाकात कर विपक्षी एकता की पहल की थी। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।

 

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