यासीन मलिक को सुप्रीम कोर्ट में क्यों लाए, ऐसा कोई आदेश नहीं था; मचा बवाल
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक की व्यक्तिगत पेशी पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि जब ऐसा कोई आदेश पारित ही नहीं किया गया तो उसे अदालत में क्यों लाया गया। सुप्रीम कोर्ट की पीठ पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के 1989 में हुए अपहरण के मामले में जम्मू की निचली अदालत द्वारा 20 सितंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ सीबीआई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान यासीन मलिक अदालत कक्ष में उपस्थित हुआ। आतंकी वित्तपोषण मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे यासीन मलिक को खचाखच भरे अदालत कक्ष में देखकर उच्चतम न्यायालय में एक प्रकार से सनसनी मच गई।
यासीन मलिक को तिहाड़ जेल के अधिकारियों द्वारा कड़ी सुरक्षा के बीच सुप्रीम कोर्ट लाया गया। हालांकि, सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा, ''जस्टिस दत्ता इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते।'' सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि मामले में यासीन मलिक को शीर्ष अदालत के समक्ष पेश करने के लिए उसकी तरफ से कोई आदेश पारित नहीं किया गया था। उन्होंने कहा, "यह एक बड़ा सुरक्षा मुद्दा है, और वह एक उच्च जोखिम वाला कैदी है जिसे जेल से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है। इस आशय का एक आदेश पारित किया गया है।" मेहता ने पीठ को आश्वासन दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक कदम उठाए जाएंगे कि मलिक को भविष्य में इस तरह जेल से बाहर नहीं लाया जाए।
खुद चाल चल रहा है यासीन मलिक
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ को सूचित किया कि जेल अधिकारियों ने शीर्ष अदालत के आदेश को गलत समझा जिसके कारण मलिक को लापरवाही से जेल से बाहर लाया गया था। उन्होंने पीठ से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है। जवाब में, न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि वे कोई आदेश पारित नहीं कर सकते क्योंकि वे मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं, और आवश्यक आदेश दूसरी पीठ से मांगे जा सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया, "मलिक वर्चुअल मोड के माध्यम से अदालत में पेश हो सकता है। यह हम सभी के लिए सुविधाजनक है।" सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया, ''हम तैयार हैं, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।''
इस बीच सीबीआई ने अदालत को बताया कि जेकेएलएफ का शीर्ष नेता मलिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और उसे तिहाड़ जेल परिसर से बाहर ले जाए जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। शीर्ष अदालत ने सीबीआई की अपील पर 24 अप्रैल को एक नोटिस जारी किया था जिसके बाद मलिक ने 26 मई को उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा था और अपने मामले की पैरवी के लिए व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहने की मंजूरी का अनुरोध किया था।
न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग किया
मामले में एक सहायक रजिस्ट्रार ने 18 जुलाई को मलिक के अनुरोध पर गौर किया और कहा कि शीर्ष अदालत आवश्यक आदेश पारित करेगी। तिहाड़ जेल के अधिकारियों ने प्रत्यक्ष तौर पर इसे गलत समझा कि मलिक को अपने मामले की पैरवी के लिए उच्चतम न्यायालय में पेश किया जाना है। मेहता ने जब मलिक की अदालत कक्ष में मौजूदगी पर प्रश्न किया तो पीठ ने कहा कि उसने मलिक को कोई अनुमति नहीं दी या व्यक्तिगत तौर पर अपने मामले की जिरह की अनुमति देने वाला कोई आदेश परित नहीं किया। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है और अब इसे उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष रखा जाएगा। न्यायमूर्ति दत्ता ने सुनवाई से खुद को अलग करने का कोई कारण नहीं बताया है।
आदेश की ‘‘गलत व्याख्या’’
मेहता ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर सुरक्षा मुद्दा है। उसे (मलिक) जेल अधिकारियों के लापरवाही भरे रवैये के कारण अदालत में लाया गया है और भविष्य में ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। वह राष्ट्र के लिए खतरा है। वह दूसरों के लिए एक बड़ा सुरक्षा खतरा है।’’ उन्होंने कहा कि मलिक को कुछ आदेश की ‘‘गलत व्याख्या’’ के कारण अदालत में लाया गया। सीबीआई की ओर से भी पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि अदालत स्पष्ट कर सकती है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक आदेश पारित कर सकती है कि ऐसी घटना दोबारा न हो।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि किसी आरोपी द्वारा व्यक्तिगत रूप से बहस करना अब कोई समस्या नहीं है क्योंकि शीर्ष अदालत इन दिनों वर्चुअल सुनवाई की अनुमति दे रही है। इस पर मेहता ने कहा कि सीबीआई मलिक को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बहस करने की अनुमति देने के लिए तैयार थी लेकिन वह वर्चुअल रूप से पेश होने से इनकार कर रहा है।
दूसरी पीठ का होगा गठन
मेहता ने रुबैया सईद अपहरण मामले में गवाहों से जिरह के लिए मलिक को जम्मू लाने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपनी अपील में सीबीआई के तर्क का उल्लेख किया और कहा कि सीआरपीसी की धारा 268 के तहत राज्य सरकार कुछ लोगों को जेल की सीमा से स्थानांतरित नहीं करने का निर्देश दे सकती है।