बिलासपुर
एसईसीएल की कोयला खदान में कोयला गैसीकरण परियोजना की मदद से कोयले से प्राकृतिक गैस, मेथनॉल, अमोनिया और अन्य आवश्यक उत्पाद बनाने की संभावना तलाशी जा रही है। अगर यह परियोजना अमल में आती है तो छत्तीसगढ़ राज्य में इस प्रकार की पहली परियोजना होगी। कोयला गैसीकरण दहन के विपरीत कोयले के अवयवों को विद्युत, हाइड्रोजन, स्वच्छ ईंधन एवं मूल्यपरक रसायनों में बदलने का सबसे स्वच्छ एवं पर्यावरण-हितैषी तरीका है। भारत में गैसीकरण प्रौद्योगिकी को अपनाने से कोयला क्षेत्र में क्रांति आ जाएगी। इससे प्राकृतिक गैस, मेथनॉल, अमोनिया और अन्य आवश्यक उत्पाद के आयात पर निर्भरता कम हो जाएगी।
छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में अवस्थित एसईसीएल के भटगाँव संचालन क्षेत्र की महामाया खुली खदान में कोयला गैसीकरण परियोजना की संभावना तलाशी जा रही है। कोयला गैसीकरण परियोजना के माध्यम से यहाँ उपयुक्त डाउन स्ट्रीम प्रोडक्ट के रूप में 'अमोनियाझ् बनाने की योजना पर विचार हो रहा है। कोल इंडिया अपनी विभिन्न अनुषंगी कंपनियों में कोयला गैसीकरण की संभावनाओं को तलाश रही है। गैसीकरण परियोजनाओं के कार्यान्वयन को आगे बढ़ाने में सहयोग और विशेषज्ञता को बढ़ाव देने के लिए कंपनी ने बीएचईएल (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड), आईओसीएल (इंडियन आइल कापोर्रेशन लिमिटेड), जीएआईएल (गैस अथॉरिटी आफ इंडिया लिमिटेड), के साथ समझौते किए हैं।
सतत धारणीय विकास को बढ़ावा देने एवं कोयला उद्योग के कार्बन फुटप्रिंट कम करने के उद्देश्य से कोयला मंत्रालय, भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2030 तक 100 मिलियन टन (एमटी) कोयले का गैसीकरण हासिल करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में, भारत घरेलू मांग को पूरा करने के लिए अपनी प्राकृतिक गैस का लगभग 50 प्रतिशत, कुल मेथनॉल खपत का 90 प्रतिशत से अधिक और कुल अमोनिया खपत का लगभग 13-15 प्रतिशत आयात करता है। कोयला गैसीकरण के कार्यान्वयन से 2030 तक इन उत्पादों का आयात कम करके देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने की उम्मीद है।