जनप्रतिनिधि मेरा देश, मेरी जनता की सोच के साथ करे काम: राष्ट्रदपति द्रौपदी मुर्मू
जयपुर
राष्ट्रदपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि जनप्रतिनिधियों को मैं, मेरा के स्थान पर मेरा देश, मेरी जनता एवं मेरा समाज की सोच के साथ कार्य करना चाहिए।
श्रीमती मुर्मू 15वीं राजस्थाचन विधानसभा के आठवें सत्र के पुन: आरम्भह होने पर शुक्रवार को यहां आजादी के अमृत महोत्सव के तहत विशेष रूप से सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने विधायकों से समावेशी विकास और जनहित की परम्परा को मजबूत बनाते हुए विधानसभा के जरिए संसदीय गरिमा को बढ़ाने और राजस्थान के समग्र विकास के लिए कार्य करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को जनता बहुत प्यार से चुनकर भेजती है, ऐसे में उनका चाल-चलन, व्यवहार, आचार-विचार सब जनता के हित को ध्यान में रखते हुए ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधि कानून बनाते समय जनता की वर्तमान जरूरतों और व्यापक जनहित का ध्यान रखें। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों को अपनाते हुए सामाजिक न्याय और बंधुत्व की भावना के लिए कार्य किए जाने का आह्वान किया।
राष्ट्रेपति ने कहा कि वर्तमान संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष राजस्थान से आते हैं, यह प्रदेश के लिए गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत प्रदेश में विधानसभाओं के गठन का प्रावधान लागू हुआ। उन्होंने कहा कि राजस्थान में पहली विधानसभा 1952 में अस्तित्व में आई, लेकिन 1956 में प्रदेश के एकीकरण के साथ विधानसभा का वर्तमान स्वरूप निर्धारित होने लगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान में गणतंत्र की परम्परा प्राचीन काल से ही देखने को मिलती हैं, यहां उत्तरी राजस्थान के भूभाग में पांचवीं शताब्दी तक यौधेय जनजाति का गणराज्य था।
श्रीमती मुर्मू ने राजस्थानी भाषा में सभी के अभिनंदन से अपने उद्बोधन की शुरुआत की। उन्होंने राजस्थान विधानसभा के निर्माण और उसकी ऐतिहासिक यात्रा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि राजस्थान अपनी गौरवमय परम्पराओं, स्थापत्य और शिल्प धरोहर में अनूठा है। उन्होंने जयपुर को यूनेस्को द्वारा एतिहासिक नगरी का दर्जा दिए जाने के लिए बधाई भी दी। उन्होंने अपने सम्बोधन में राजस्थान के गौरवशाली इतिहास, शूर-वीरता, सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और पधारो म्हारे देस के आतिथ्य सत्कार सहित सभी आयामों की चर्चा की।
उन्होंने महाकवि माघ, चन्दवरदाई, मीरांबाई के साहित्यिक अवदान एवं पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा और महाराणा प्रताप के साथ-साथ उनके सहयोगी रहे राणा पूंजा को भी याद किया। उन्होंने डूंगरपुर की आदिवासी बालिका कालीबाई के आजादी में रहे योगदान को याद करते हुए गोविंद गुरु को महान स्वतंत्रता सेनानी बताते हुए कहा कि स्वाभिमान की भावना राजस्थान के लोगों में कूट-कूट कर भरी है।
राष्ट्रपति ने पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया से लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत द्वारा राजस्थान के विकास के लिए किए गए कार्यों को याद किया। उन्होंने बाल विवाह निरोधक कानून (शारदा एक्ट) को महत्वपूर्ण बताते हुए सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रदेश में किए गए कार्यों की भी चर्चा की।
इस अवसर पर राजस्थान के राज्यकपाल कलराज मिश्र ने विधायकों से सदन की मर्यादा को कायम रखते लोकतंत्र के सशक्तिकरण के लिए कार्य करने का आह्वान किया। मिश्र ने कहा कि विधायिका यदि प्रभावी रूप में कार्य करती है तो उसका सीधा असर कार्यपालिका पर पड़ता है और कालान्तर में इससे जनता के हित से जुड़े मुद्दों, विकास कार्यों, जनकल्याण योजनाओं को धरातल पर लाते हुए उनका बेहतर क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय परंपराओं में आरम्भ से ही लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रही है। उन्होंने कहा कि संसदीय लोकतंत्र के लम्बे अनुभव के आधार पर वह यह कह सकते हैं कि लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति जनता में ही निहित है जो जनप्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में बैठे प्रतिनिधियों का यह कर्तव्य है कि जन विश्वास पर खरा उतरते हुए उनके सर्वांगीण विकास के लिए काम करें।
मिश्र ने विधायी दायित्वों की चर्चा करते हुए कहा कि संविधान में लोकसभा, राज्यसभा, विधानमंडलों के तहत चुने हुए प्रतिनिधियों को बहुत सारे अधिकार और विशेषाधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि सदस्य प्रयास करें कि सदन निरर्थक बहस और आरोप प्रत्यारोप लगाने का स्थान नहीं बने और वे अपने अधिकारों, विशेषाधिकारों का उपयोग करते हुए यहां जनकल्याण से जुड़े मुद्दों को सार्थक रूप से उठाने का कार्य करें। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए सदन की बैठकें समय पर आहूत होनी चाहिए।
एक ही सत्र को लम्बा नहीं चलाया जाए बल्कि सत्रावसान की कार्यवाही समुचित ढंग से यथासमय होनी चाहिए।
इस मौके राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि यह भारतीय लोकतंत्र की ही विशेषता है कि एक साधारण परिवार से आकर कोई देश के राष्ट्रपति के सर्वोच्च पर पर पहुंचता है। उन्होंने पहली बार राज्य विधानसभा में राष्ट्रपति के आगमन को ऐतिहासिक बताते हुए श्रीमती मुर्मू का स्वागत किया।
उन्होंने आजादी के बाद संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से देश और राज्य में हुए विकास की चर्चा करते हुए कहा कि लोकतंत्र जनता को समता और न्याय के लिए कार्य करने को प्रेरित करता है। उन्होंने सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए सभी को मिलकर कार्य करने का आह्वान किया।
डॉ. जोशी ने कहा कि संविधान में संसदीय लोकतंत्र के माध्यम से केंद्र सरकार और राज्य सरकार को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है उनके अनुसार हमें ऐसे कानून बनाने चाहिए जो देश और प्रदेश को आगे बढ़ाने का कार्य करें। उन्होंने कहा कि इस सदन के सदस्यों ने संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करते हुए राजस्थान के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद 75 वर्ष में देश में राजनीतिक न्याय तो सुनिश्चित हुआ है, लेकिन आर्थिक और सामाजिक स्तर पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है। उन्होंने इन चुनौतियों को स्वीकार करते हुए
सामाजिक विषमता कम करने और सौहार्द बढ़ाने के लिए साथ मिलकर कार्य करने पर बल दिया। आरम्भ में मिश्र ने श्रीमती मुर्मू को हरियाली और खुशहाली के प्रतीक के रूप में पौधा और डॉ. जोशी ने स्मृति चिह्न भेंट किया। इस मौके राज्यमंत्रिपरिषद् के सदस्य, विधायक एवं अन्य गणमान्यृ लोग मौजूद थे।