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गुरुग्राम में खोसला का घोसला जैसा केस, अफसरों की शह पर कब्जा ली 60 करोड़ की जमीन; SC का दखल

गुरुग्राम
गुरुग्राम में भूमि घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस कमिश्नर को एसआईटी बनाकर दो महीने में जांच पूरी करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि एसआईटी का हड डिप्टी एसपी रैंक से कम का अधिकारी नहीं होना चाहिए। बता दें कि इस मामले में रिजस्ट्री कार्यालय के अधिकारियों की मिलीभगत से एक वृद्ध एनआरआई दंपती धोखा देने का आरोप है। भूमि की कीमत 60 करोड़ रुपये बताई गई है। जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने जाली दस्तावेज बनाने के आरोपी की जमानत भी कैंसल कर दी है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने एसआईटी को आरोपियों के साथ सब रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की छूट दी है। आरोप है कि अधिकारियों की मदद से इस बेशकीमती  प्लॉट की नकली पावर ऑफ अटॉर्नी बनाई गई। हैरान करने वाली बात यह है कि खऱीदार ने बिना ओरिजिनल दस्तावेज देखे ही इतनी बड़ी रकम देने को तैयार हो गए। कोर्ट ने कहा है कि गुरुग्राम पुलिस कमिश्नर जांच को मॉनिटर करेंगे और रोज स्थिति का पता लगाएँगे।

क्या है मामला
गुरुग्राम में एक संपत्ति के मालिकों का आरोप है कि उनकी जमीन को उप रजिस्ट्रार कादीपुर, गुरुग्राम के ऑफिस में फर्जी बिक्री डीड के आधार पर किसी और के नाम पर दर्ज कर दिया गया है। आरोप है कि 1996 में बनी नकली पावर पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर ही इसे दूसरे लोगों के नाम कर दिया गया। आरोप है कि इस मामले में आरोपियों ने सब रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार किए। मामले की शिकायत गुरुग्राम के बादशाहपुर थाने में दर्ज की गई थी।

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने फर्जी दस्तावेज बनाने के आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। अब तक इस जमीन की मूल जीपीए भी नहीं मिली है। शिकायतकर्ताओं ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर कड़ी टिप्पणी की और कहा कि फर्जी दस्तावेज बनाना, करोड़ों की जमीन को हथियाना एक गंभीर समस्या है। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय में संतुलन बनाना जरूरी है। 

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