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आपातकाल की बात कर इंदिरा सरकार पर बरसे पीएम मोदी, योग दिवस को लेकर दी सलाह

नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के अंतर्गत देशवासियों को संबोधित किया। इस बार यह कार्यक्रम एक सप्ताह पहले ही प्रसारित किया गया। आम तौर पर मन की बात का प्रसारण महीने के आखिरी रविवार को होता था। हालांकि इस बार 21 जून से पीएम मोदी का अमेरिका दौरा शुरू हो रहा है। इसलिए यह कार्यक्रम एक सप्ताह पहले शेड्यूल कर दिया गया। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने आपातकाल की बात की। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की जननी कहे जाने वाले भारत में 25 जून काले दिवस के रूप में जाना जाता है।

पीएम मोदी ने इस कार्यक्रम में कहा, बहुत सारे लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री के तौर पर मैंने अच्छा काम किया। बहुत सारे लोग प्रशंसा करते हैं। लेकिन जब मैं भारत के सामान्य मानवी के प्रयास और मेहनत को देखता हूं तो खुद अपने आप अभिभूत हो जाता है। बड़ा से बड़ा  लक्ष्य हो। भारत के लोगों की सामूहिक शक्ति हर चुनौती का हल निकाल लेती है। अभी दो तीन दिन पहले देश के पश्चिमी छोर पर बड़ा चक्रवात आया। इस बिपरजॉय ने कितना कुछ तहस नहस कर दिया। लेकिन कच्छ के लोगों ने जिस हिम्मत के साथ इसका सामना किया वह उतना ही अभूतपूर्व है। दो दिन बाद ही कच्छ के लोग अपना नया वर्ष मनाने जा रहे हैं।

प्राकृतिक आपदाओं पर बोले पीएम मोदी

उन्होंने आगे कहा, दो दशक पहले के विनाशकारी भूकंप के बाद कहा जाता था कि कच्छ कभी उठ नहीं पाएगा। आज वही जिला देश के सबसे तेजी से विकसित होते जिलों में से एक हैं। मुझे  विश्वास है कि इस आपदा से भी कच्छ के लोग तेजी से उबर जाएंगे। प्राकृतिक आपदाओं पर किसी का जोर नहीं होता लेकिन बीते कुछ वर्षों में भारत ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने का जो तरीका विकसित किया है वह प्रशंसनीय है। आज देश कैच द रेन जैसे सामूहिक प्रयास कर रहा है। पिछले महीने हमने जल संरक्षण से जुड़े स्टार्टअप्स की बात की थी। हमारे एक साथी हैं यूपी के बांदा जिले के तुलसीराम यादव जी। वह लुक्करा ग्रामपंचायत के प्रधान हैं। आप भी जानते हैं कि बुंदेलखंड में पानी को लेकर कितनी परेशानियां रहती हैं।

तुलसीराम जी ने लोगों को साथ लेकर 40 से ज्यादा तालाब बनवाए हैं। आज उनके गांव में भूजल स्तर सुधर रहा है। वैसे ही हापुड़ में लोगों ने मिलकर एक विलुप्त नदी  को जीवित किया है। यहां लीन नाम की नदी थी। इसे कथाओं में याद किया जाता था। लोगों ने इसे फिर से जिंदा करने की ठानी. अब यह नदी फिर से जीवित होने लगी है। इसके उद्गम स्थल को अमृत सरोवर के तौर पर विकसित किया जा रहा है। इनसे जीवन के रंग और भावनाएं जुड़ी रहती हैं। ऐसा ही दृश्य महाराष्ट्र में देखने को मिला। अब यहां निलवंडे डैम के निर्माण का काम पूरा हो रहा है। कुछ दिन पहले टेस्टिंग के दौरान कैनाल में पानी छोड़ा गया था। लोग ऐसे झूम रहे थे जैसे कि होली दिवाली का त्योहार हो।

छत्रपति शिवाजी महाराज

प्रबंधन की बात हो रही है तो मैं छत्रपति शिवाजी  महाराज को याद करूंगा। जल प्रबंधन और नौसेना को लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने जो काम किए वे आज भी प्रेरणा हैं। उनके जलदुर्ग समंदर के बीच में शान से खड़े हैं। उनके राज्याभिषेक को 350 वर्ष पूरे हुए हैं। इसको लेकर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। पीएम मोदी ने कहा, जब नीयत साफ हो और प्रयासों मे ं ईमानदारी हो तो कोई भी लक्ष्य पीछे नहीं रहता। भारत ने संकल्प किया है को 2025 तक टीवी मुक्त भारत बनाया जाएगा। एक समय था जब टीबी का पता चलने के बाद परिवार के लोग ही दूर हो जाते हैं। लेकिन आज का समय है कि टीबी के रोगियों की मदद की जा रही है। इससे लड़ने के लिए निक्षय मित्रों ने मोर्चा संभाल लिया है। हजारों लोगों ने आगे आकर टीबी मरीजों को गोद लिया है। यह जनभागेदारी ही इस अभियान की सबसे बड़ी ताकत है। इसकी वजह से ही देश में 10 लाख से ज्यादा टीबी मरीजों को गोद लिया जा चुका है।

पीएम मोदी ने कहा, नैनीताल के निक्षय मित्र  मेवाड़ी जी ने 6 लोगों को गोद लिया है। भारत को टीबी मुक्त बनाने की मुहिम में हमारे बच्चे पीछे नहीं हैं। हिमाचल के ऊना की सात साल की बेटी नलिनी ने अपनी पॉकेट मनी से टीबी मरीजों की मदद कर रही है। कम उम्र में बड़ी सोच रखने वाले बच्चों की प्रशंसा करता हूं. हम हमेशा नए विचारों के स्वागत के लिए तैयार रहते हैं। हम नई चीजों को आत्मसात करते हैं। जापान की तकनीक मियाबाकी के जरिए बंजर जमीन को हराभरा करने की तकनीक है। ये जंगल तेजी से फैलते हैं और कुछ ही दिनों में जैव विविधता का केंद्र बन जाते हैं। केरल की राखी रामनाथ जी ने इस तरीके से एक इलाके की तस्वीर ही बदल दी। वह स्टूडेंट को समझाना  चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक हर्बल गार्डन बना डाला।

रामनाथ जी के विद्यावनम में 115 वराइटी के पेड़ लगाए गए हैं। इस खूबसूरत जगह को देखने के लिए आसपास के स्कूली बच्चे भी आते हैं। मियाबाकी जंगलों को किसी भी जगह उगाया जा सकता है। कुछ सममय पहले ही मैंने गुजरात के केवड़िया एकतानगर में मियाबागी फॉरेस्ट का उद्घाटन किया गया था। कच्छ में भी एक जंगल बनाया गया है। मुश्किल प्राकृतिक परिवेश में भी यह तकनीक प्रभावी है। मुझे पता चला है कि लखनऊ के अलीगंज में भी मियाबाकी उद्यान तैयार किया जा रहा है। यह तकनीक पूरी दुनिया में पसंद की जा रही है। 

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