BJP विपक्षी एकता को फुस्स करने की तैयारी में, 5 स्टेप से समझें प्लान
नईदिल्ली
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक दलों के दांव-पेंच और सियासी किलेबंदी नए रूप लेती दिख रही है। 23 जून को जहां पटना में विपक्षी दलों का महाजुटान होने जा रहा है, वहीं केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी अंदरखाने कई पुराने सहयोगियों को साधने में जुटी है। इसी कवायद के जरिए वह विपक्षी एकजुटता को फुस्स करने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि विपक्षी दलों की एकता 2024 के आम चुनावों में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए बीजेपी ने भी अपने पुराने साथियों पर फिर से डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि पुराने साथियों को लामबंद कर कई राज्यों में विपक्षी एकता को मात दिया जा सकता है। आइए, समझें बीजेपी का अंदरूनी प्लान क्या है?
कुशवाहा-सहनी-मांझी पर डोरे:
बीजेपी सबसे ज्यादा जद्दोजहद बिहार में अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए कर रही है। इसकी बानगी यह है कि अमित शाह खुद छह महीने में चार बार बिहार का दौरा कर चुके हैं। बीजेपी बिहार में विपक्षी एकता की धार को भी कुंद करना चाहती है और इसके लिए न सिर्फ अपने पुराने सहयोगियों को फिर से साधने की कोशिश में है बल्कि नीतीश के साथ गठबंधन में शामिल दलों को भी तोड़ने के लिए डोरे डाल रही है।
पिछले महीनों में जब मोदी सरकार के पूर्व मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और वीआईपी पार्टी के चीफ मुकेश सहनी ने नीतीश कुमार से अपनी सियासी राह अलग की तो बीजेपी की केंद्र सरकार ने उन्हें वाई प्लास सुरक्षा देने में देर नहीं की। हाई प्रोफाइल सुरक्षा देने के बाहने बीजेपी ने उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश की। अब वो जीतनराम मांझी पर डोरे डाल रही है। मांझी के बेटे संतोष मांझी ने एक दिन पहले ही नीतीश मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है। इसके अलावा बीजेपी चिराग पासवान को भी अपने पाले में करने की कोशिशों में हैं। गौर करने वाली बात है कि ये सभी नेता पहले भी घटक दल के रूप में एनडीए में रह चुके हैं। इन दलों के पास करीब 17 फीसदी वोट बैंक माना जाता है।
टीडीपी से नजदीकियां:
तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से बीजेपी की नजदीकियां अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से रही है लेकिन पांच साल पहले टीडीपी ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर न केवल एनडीए से नाता तोड़ लिया था बल्कि बीजेपी और मोदी सरकार की खूब आलोचना की थी। अब, जब उसकी पैठ दोनों राज्यों (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में कमजोर हुई है, तब नायडू ने फिर से बीजेपी की तरफ हाथ बढ़ाया है।
तेलंगाना में बीजेपी भी पहले के मुकाबले मजबूत हुई है। खासकर शहरी क्षेत्रों में, ऐसे में दोनों दलों को एक-दूसरे के साथ की जरूरत महसूस हुई है। पिछले दिनों पीएम मोदी ने मन की बात में चंद्रबाबू नायडू के ससुर और पूर्व सीएम एनटी रामाराव का जिक्र कर पुराने सहयोगी से आगे की दोस्ती के संकेत दिए थे। टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू ने भी दिल्ली पहुंचकर अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात कर गठजोड़ की संभावना को बल दिया है।
अकाली दल पर फिर भरोसा:
पंजाब में विधान सभा चुनाव हारने के बाद अकाली दल की स्थिति कमजोर हुई है। बीजेपी के पास पंजाब में गंवाने को तो कुछ नहीं था लेकिन उसे पता है कि अलग-अलग रहने से तीसरी शक्ति वहां बाजी मारती रहेगी। इसलिए जब अकाली दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का निधन हुआ तो उन्हें श्रद्धांजलि देने खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंडीगढ़ पहुंचे। बाद में उनकी शोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे।
दुख की घड़ी में बीजेपी के दो दिग्गजों की मौजूदगी ने बीजेपी-अकाली दल के रिश्तों पर जमे बर्फ को पिघला दिया। दोनों दलों के बीच रिश्तों में खटास किसान आंदोलन की वजह से आई थी। बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल से अकाली नेता हरसिमरत कौर के इस्तीफे से दोनों दलों की दशकों पुरानी दोस्ती टूट गई थी। जब पंजाब चुनावों में अकाली दल को फायदा नहीं मिला तो उसे अपनी रणनीति बदलने के लिए सोचना पड़ा। अब फिर से दोनों दल आम चुनाव 2024 में एकसाथ आ सकते हैं।
ओपी राजभर से निकटता:
उत्तर प्रदेश में वैसे तो बीजेपी की स्थिति मजबूत है। बावजूद इसके छोटे दलों खासकर ओबीसी समुदाय की नुमाइंदगी करने वाले छोटे दलों को लेकर बीजेपी खुलापन दिखा रही है और माना जा रहा है कि ओमप्रकाश राजभर फिर से बीजेपी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं।
AIADMK से पहले से ही दोस्ती:
दक्षिणी रीज्य तमिलनाडु में पहले से ही AIADMK के साथ बीजेपी की दोस्ती है। हालांकि, पिछले दिनों तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के एक बयान से दोनों दलों की बेच रिश्तों में कड़वाहट आई है, बावजूद इसके बीजेपी अन्नाद्रमुक को साथ लेकर चलने की पुरानी नीति पर कायम है। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में भी जेडीएस ने कांग्रेस की पांच गारंटी पर जिस तरह के बयान दिए और नई संसद भवन के उद्घाटन समारोह में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा शामिल हुए,उससे भविष्य की सियासी संभावनाओं को बल मिलता है। इसके अलावा उमर अब्दुला का पटना जाने से इनकार करना भी सियासत के नए गठजोड़ की ओर संभावित इशारा कर रहा है।