हिंदू धर्म में पूजा करते समय सिर क्यों ढ़कते है, जाने क्या है इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
आपने अपने आस-पास या कुछ दूरी पर मंदिरों, गुरुद्वारों में महिलाओं को अपना सिर ढंक कर देवी-देवों की प्रार्थना, अरदास, पूजा-पाठ, नमन, परिक्रमा आदि करते देखा होगा. यह प्रशंसनीय है, अपने धर्म, संस्कृति, आस्था, सम्मान, आदर, मर्यादा का प्रतीक है तो इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है.
किसी भी देवी-देवता के मंदिर में प्रवेश, दर्शन, पूजा, पाठ, आरती आदि के समय सिर ढंकना मर्यादा, सम्मान, धार्मिक द्रष्टि से आवश्यक है पर महावीर हनुमान, शनिदेव तथा भैरव के मंदिरों में सिर ढंकना विशेषत अनिवार्य है. देवाधिदेव शिव सहित अन्य देवी-देव सिर न ढंकने की भूल को अक्षम्य न मानें पर नौ ग्रहों में अतिक्रूर, गर्म मिजाज शनि देव, कई भयानक रूपों-नामों से जाने जाते भैरव के दर्शन के समय सिर न ढंकने, उनका सम्मान तथा स्वयं की मर्यादा को अनदेखा करना माना जाता है.
सिर ढंकने के फायदे
- इससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है तथा ध्यान से एकत्रित सकारात्मक ऊर्जा शरीर में बनी रहती है.
- पूजा के समय पुरुषों द्वारा शिखा बांधने को लेकर भी यही मान्यता है.
- कहा जाता है कि सिर के मध्य में एक चक्र होता है. ऐसे में जब आप सिर को ढंक कर पूजा करते हैं तो यह चक्र सक्रिय होता है.
- ध्यान केंद्रित करने के लिए भी सिर को ढंका जाता है.
- आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि कई प्रकार के रोगों को जन्म देती है.
- सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु सरलता से संपर्क में आते हैं, क्योंकि में चुम्बकीय शक्ति होती है. सिर को ढंकने से इन कीटाणुओं से बचा जा सकता है.