राहुल गांधी के साथ नहीं, लेकिन कांग्रेसी पैटर्न पर YSR कांग्रेस, आंध्र प्रदेश में ओल्ड पेंशन पर बड़ा फैसला
नई दिल्ली
वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भले ही कांग्रेस से दूरी बना रखी हो लेकिन वह कांग्रेस के चुनावी पैटर्न और गवर्नेंस मॉडल पर चलते दिख रहे हैं। उनकी अध्यक्षता में आंध्र प्रदेश कैबिनेट ने बुधवार को गारंटी पेंशन योजना (जीपीएस) के तहत सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50% सुनिश्चित पेंशन देने का फैसला किया है। एक सरकारी बयान में इसकी जानकारी दी गई है। गारंटी पेंशन योजना कांग्रेस द्वारा प्रचारित और कई राज्यों में लागू की जा रही पुरानी पेंशन योजना के समान ही है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकारों ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली की है। इसमें भी सरकारी कर्मचारियों को अंतिम वेतन निकासी की 50 फीसदी राशि बतौर पेंशन दिया जाना है।
नया जीपीएस अंशदायी पेंशन योजना (सीपीएस) की जगह लेगा, जिसका राज्य सरकार के कर्मचारी लंबे समय से विरोध कर रहे थे। कर्मचारी सीपीएस की जगह जीपीएस की मांग कर रहे थे क्योंकि सीपीएस न्यूनतम पेंशन का आश्वासन नहीं देता। जगन मोहन रेड्डी ने 2019 के राज्य विधानसभा चुनाव से पहले सीपीएस को जीपीएस से बदलने का वादा किया था।
सरकारी बयान में कहा गया है कि जीपीएस योजना के तहत पात्र कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन की 50 फीसदी राशि पेंशन के रूप में प्राप्त होगा। इसमें केन्द्र सरकार की तरह महंगाई भत्ता भी शामिल होगा और यह भत्ता साल में दो बार मिलेगा। सरकार द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, ''राज्य के भविष्य और कर्मचारियों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जीपीएस में संशोधन किया गया है।''
मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की अध्यक्षता में हुई आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में बुधवार को कर्मचारियों के लिए 'गारंटी वाली पेंशन योजना' (जीपीएस), 6,840 नयी सरकारी नौकरियों और करीब 10,000 संविदा कर्मियों को नियमित करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए गए। राज्य सरकार ने वैसे संविदा कर्मियों को भी नियमित करने का फैसला किया है जिन्होंने 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के विभाजन की तारीख से पहले पांच साल की सेवा पूरी कर ली है।
वाईएसआर कैबिनेट ने उन मंदिरों का प्रबंधन भी संबंधित समितियों को सौंपने का फैसला किया है, जिनकी वार्षिक आय 5 लाख रुपये से कम है। बयान में कहा गया है कि यह पांच साल के लिए लागू होगा और मंदिर के अर्चकों या स्थानीय समितियों को उन्हें चलाने की अनुमति होगी।