साल की सबसे बड़ी निर्जला एकादशी एक साथ चार विशेष योगों के साथ मानेगी , जानें खासियत
निर्जला एकादशी का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। साल में पड़ने वाली सभी 24 एकादशी अलग-अलग नाम से जानी जाती है। इसी तरह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है। मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने वालों पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। इससे चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत साल में पड़ने वाली सभी 24 एकादशी के व्रत में सबसे कठिन माना जाता है। क्योंकि यह उपवास भीषण गर्मी में पड़ता है और इस व्रत में अन्न के साथ जल का भी त्याग करना पड़ता है। इसलिए साल में एक बार सिर्फ निर्जला एकादशी रखने वाले व्यक्ति को सभी एकादशी के बराबर पुण्यफल मिल जाता है और साधक को सुख संपत्ति समेत मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी तिथि का आरंभः 30 मई 2023 मंगलवार दोपहर 1.07 पीएम से
निर्जला एकादशी तिथि का समापनः 31 मई 2023 बुधवार दोपहर 1.45 पीएम तक
उदयातिथि में निर्जला एकादशीः 31 मई 2023 बुधवार को
पारण का समयः 1 जून को 5.24 एएम से 8.10 एएम के बीच
निर्जला एकादशी के दिन शुभ योग
इस दिन व्यतीपात योग रात 8.15 बजे तक है। इसके अलावा राजस्थान में प्रचलित एक पंचांग के अनुसार इस दिन सुबह 5.24 एएम से सुबह 6.00 एएम तक सर्वार्थ सिद्धि और रवियोग भी बन रहे हैं, हालांकि इसी समय विडाल योग भी बन रहा है जो अशुभ समय माना जाता है (दृक पंचांग)। वहीं दृक पंचांग के अनुसार 2.48 पीएम से 3.41 पीएम तक विजय मुहूर्त बन रहा है।
चार योगों के मध्य निर्जला एकादशी का फल
निर्जला एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है, यह एक शुभ योग है। वहीं इसी समय विडाल योग और रवि योग बन रहा है। इसमें से विडाल योग अशुभ योग है। इसके अलावा रात 8.15 बजे तक व्यतिपात योग बन रहा है, यह भी शुभ योग है। तीन शुभ योगों के प्रभाव से इस समय किए गए शुभ कार्यों का शुभ फल मिलेगा, हालांकि अशुभ कार्यों का फल अशुभ भी मिल सकता है।
और किन नामों से जानी जाती है निर्जला एकादशी
निर्जला एकादशी के दिन ही गायत्री जयंती पड़ती है। इस व्रत का भी बड़ा महत्व है। इसके अलावा निर्जला एकादशी, भीमसेनी एकादशी, पांडव एकादशी आदि नामों से जानी जाती है।
निर्जला एकादशी पूजन विधि
1. निर्जला एकादशी की पूजा की तैयारी एक दिन पहले शुरू हो जाती है, दशमी के दिन शाम से ही व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को सात्विक आचरण शुरू कर देना चाहिए। शाम के बाद अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए।
2. निर्जला एकादशी के दिन सुबह स्नान कर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें।
3. एक चौकी पर पीले वस्त्र बिछाकर नारायण की मूर्ति स्थापित कर पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।
4. भगवान विष्णु को पीले फल, फूल, माला, अक्षत, मिठाई तुलसीदल, पंचामृत अर्पित करें।
5. घी का दीपक जलाकर भगवान लक्ष्मी नारायण के मंत्रों का जाप करें।
6. व्रत की कथा पढ़ें, विष्णु चालीसा पढ़ें, भगवान की आरती गाएं।
7. सारा दिन बिना अन्न जल के उपवास करें, रात्रि जागरण करते हुए नारायण का ध्यान करें।
8. द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, ब्राह्मणों, गरीबों को भोजन कराने, दक्षिणा देने के बाद पारण करें।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी व्रत कथा पांडवों से जुड़ी हुई है। पांचों पांडवों में भीमसेन खाने के शौकीन थे, उन्हें भूख बहुत लगती थी। इस कारण भीम एकादशी व्रत नहीं रख पाते थे। बाकी के पांडव और द्रौपदी एकादशी का व्रत रखते थे, इसको लेकर भीम चिंतित भी रहते थे कि वो कोई उपवास नहीं रख पा रहे हैं और भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं।
इसी समस्या को लेकर भीमसेन महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचे, यहां उन्होंने महर्षि को अपनी पीड़ा बताई। कहा कि उनके लिए भूख बर्दाश्त करना मुश्किल है, इससे वो हर महीने एकादशी व्रत नहीं रख सकता तो क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है कि साल में एक दिन ही व्रत रख ले और उसे भी बैकुंठ की प्राप्ति हो जाए।
इस पर महर्षि वेदव्यास ने उसे साल में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि यह चौबीस एकादशी के बराबर ही है। भीमसेन ने इसे रखा, इसीलिए यह भीमसेनी एकादशी कही जाने लगी।