बस्तर
छत्तीसगढ़ में शराबबंदी सियासी मुद्दा बना हुआ है। सूबे में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की कवायद चल रही है लेकिन कई सियासी और आर्थिक सामाजिक कारणों से अड़चनें भी सामने आ रही हैं। सूबे के आदिवासी बाहुल्य इलाके बस्तर में शराबबंदी को लागू नहीं किया जा सकेगा। प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने गुरुवार को कहा कि आदिवासी बहुल बस्तर क्षेत्र में शराबबंदी के नियम राज्य के बाकी हिस्सों से अलग होंगे और इस संबंध में निर्णय पंचायत द्वारा लिया जाएगा।
गुरुवार को रायपुर में मीडियाकर्मियों से बात करते हुए, मंत्री ने कहा कि बस्तर के लोग और उनकी पूजा के तरीके अलग हैं और पूजा के दौरान उनके कई अनुष्ठान शराब के उपयोग या सेवन के बिना नहीं किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा, ''इसलिए बस्तर क्षेत्र के लिए शराबबंदी के नियम अलग होंगे और वहां शराबबंदी का सवाल ही नहीं उठता।" उन्होंने कहा कि क्षेत्र की आबादी आदिवासी बहुल है और वहां की पंचायत इस संबंध में निर्णय लेगी।
लखमा ने बताया कि शराबबंदी की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विधानसभा में की थी। राजनीति से परे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दिल में छत्तीसगढ़ की भलाई है। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के एक या दो सदस्यों वाली एक समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने बताया कि भाजपा और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने अपने दलों से अब तक कोई नाम प्रस्तावित नहीं किया है, वहीं बसपा ने समिति के लिए नाम दिया है लेकिन पार्टी के नेता बैठक में नहीं आए। उन्होंने कहा कि समिति के सभी सदस्यों ने बुधवार को दिल्ली का दौरा किया और बाद में गुजरात का दौरा किया, उन्होंने कहा कि विधानसभा के बजट सत्र के बाद वे मिजोरम भी जाएंगे। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार लोगों के हित में फैसला लेगी। सियासी हमला बोलते हुए मंत्री ने कहा कि भाजपा केवल झूठ बोलती है और वोट के लिए राजनीति करती है।