दिल्ली सरकार ने कसी अफसरों की नकेल, मंत्री की मंजूरी बिना जारी नहीं होंगे सेवा विभाग के आदेश
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सेवा विभाग मिलते ही सरकार ने अधिकारियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी है। सेवा विभाग के प्रभारी मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि मुख्य सचिव और सेवा विभाग के सचिव बिना मंत्री को बताए सेवा विभाग से जुड़े किसी भी आदेश को जारी नहीं कर सकेंगे। अधिकारी किसी भी श्रेणी के कर्मचारी के तबादले के लिए भी मंत्री से अनुमति लेंगे। भारद्वाज के आदेश के मुताबिक, मुख्य सचिव नरेश कुमार अब किसी भी श्रेणी के कर्मचारी को लेकर कोई आदेश तब तक जारी नहीं करेंगे, जब तक उस पर प्रभारी मंत्री की मंजूरी नहीं ली जाएगी। इससे पहले, दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने अपने विभाग प्रमुखों से पूर्व में उपराज्यपाल के जारी आदेशों पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह पहला मौका नहीं है जब मुख्य सचिव के अधिकारों पर शिकंजा कसा गया है। इससे पहले 16 मई को एक आदेश में कहा गया था कि मुख्य सचिव बिना प्रभारी मंत्री को बताए कोई भी फाइल आगे उपराज्यपाल (एलजी) को नहीं बढ़ाएंगे। मसलन, अब मुख्य सचिव को उच्चाधिकारियों से लेकर नीचे तक किसी भी कर्मचारी को एक से दूसरी जगह तैनाती से पहले मंत्री से मंजूरी लेनी होगी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले बीते कुछ महीनों में एलजी की ओर से अधिकारियों को सीधे दिए गए निर्देश पर आगे कार्रवाई से रोक लगा दी थी। साथ ही विभाग प्रमुखों से अपने प्रभारी मंत्री को उन निर्देशों की जानकारी मांगी थी।
पीके गुप्ता को मुख्य सचिव बनाने का प्रस्ताव
सेवा सचिव आशीष मोरे को बदलने के बाद दिल्ली सरकार ने मुख्य सचिव को भी हटाने की तैयारी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को मुख्य सचिव नरेश कुमार की जगह पीके गुप्ता को नया मुख्य सचिव बनाने के लिए उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजकर सहमति मांगी है। आबकारी नीति मामले में जांच रिपोर्ट उन्होंने ही तैयार की थी। मुख्य सचिव कुमार बीते साल ही बतौर मुख्य सचिव तैनात हुए थे। वह दिल्ली नगर निगम आयुक्त भी रह चुके हैं।
मंत्रियों को फाइल न दिखाने पर कई बार हो चुका विवाद
दिल्ली सरकार में किसी भी श्रेणी के कर्मचारी को लेकर कोई भी आदेश मुख्य सचिव या सेवा विभाग के सचिव बगैर प्रभारी मंत्री के मंजूरी के नहीं करेंगे। इसे लेकर कई बार सरकार व अधिकारियों के बीच विवाद भी रहा है। बिजली सब्सिडी योजना में बदलाव का प्रस्ताव हो या बजट में केंद्र सरकार की ओर से पूछे गए सवालों के जवाब, अधिकारियों की ओर से ये फाइल समय पर नहीं दी गई। इसी का असर था कि दिल्ली सरकार को इस बार बजट पेश करने तक की तारीख को अंतिम समय में बदलना पड़ा। बिजली सब्सिडी की योजना को बदलने का प्रस्ताव तक तैयार किया गया, लेकिन उसके बारे में संबंधित बिजली मंत्री तक को नहीं बताया गया। सेवा विभाग मिलने से पहले लोक निर्माण विभाग के सचिव को कई बार बदला गया लेकिन सरकार से पूछा तक नहीं गया। यही नहीं शिक्षकों के प्रशिक्षण का मसला हो या फिर अस्पतालों में डेटा ऑपरेटर की नियुक्ति का प्रस्ताव, बिना सरकार के संज्ञान में लिए इसपर फैसले लिए गए।