कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा की आशंका, किंगमेकर बन सकते कुमारस्वामी; बीजेपी-कांग्रेस ने डाले डोरे
नई दिल्ली
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के बाद अब मतों की गिनती की बारी है। शनिवार को काउंटिंग होगी। इससे पहले सामने आए अधिकांश एग्जिट पोल में त्रिशंकु विधानसभा के आसार दिख रहे हैं। नतीजों के बाद अगर ऐसी स्थिति बनती है तो जेडीएस की पूछ बढ़ जाएगी। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अंदरखाने कोशिशें भी तेज कर दी है। इस मुद्दे पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और पूर्व सीएम सिद्धारमैया के नेतृत्व में वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारियों ने पार्टी महासचिवों केसी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ बातचीत की है।
सूत्रों का यह भी कहना है कि केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना को देखते हुए भाजपा के केंद्रीय नेताओं के साथ टेलीफोन पर चर्चा की है। यदि भाजपा बहुमत से दूर रहती हो तो उसे जेडीएस के समर्थन की दरकार पड़ेगी।
2018 के नतीजों पर गौर करें तो बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन बहुमत के लिए उसे 9 और विधायकों के समर्थन की आवश्यक्ता थी। 2018 में कांग्रेस के 78 और जेडीएस के 37 विधायक चुनाव जीतने में सफल रहे थे। बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस के मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया। एचडी कुमारस्वामी सीएम बने, लेकिन वह एक ही साल तक सरकार चला सके।
बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में कांग्रेस और जेडीएस के कई विधायकों ने पाला बदला और कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनी। 2018 के अनुभव को देखते हुए यह जरूरी नहीं है कि कुमारस्वामी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाए। अगर त्रिशंकु विधानसभा के आसार बनते हैं तो जेडीएस के विधायकों के टूटने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
2018 की ही तरह कुमारस्वामी बुधवार की रात सिंगापुर के लिए रवाना हो चुके हैं। वह नतीजे के दिन यानी शनिवार को बेंगलुरु वापस लौट सकते हैं। त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में उनके पास अपने विधायकों को साथ रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
यदि कांग्रेस बहुमत के लिए जरूरी 113 सीटों के करीब पहुंच जाती है तो सरकार बनाने के लिए निर्दलीय और छोटे दलों को साथ ले सकती है। अगर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है और उसे 10 से अधिक विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती है तो यह स्थिति कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगी। उसे जेडीएस के समर्थन की आवश्यक्ता होगी। ऐसी स्थिति में सिद्धारमैया या शिवकुमार के मुख्यमंत्री बनने की संभावना कम होगी, क्योंकि दोनों में से किसी का भी क्षेत्रीय पार्टी के साथ अच्छा तालमेल नहीं है।