समय के साथ चेकअप जरूरी है सेहत के लिए
अच्छा स्वास्थ्य सबकी चाहत होती है। बहुत से लोग स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए योगा, सैर, जिम, व्यायाम, तैराकी आदि नियमित रूप से करते रहते हैं। बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक न हों। अच्छी सेहत बहुत बड़ी देन है। भगवान की इस देन को आगे बरकरार रखने के लिए हमें समय-समय पर डाक्टरों से सलाह लेते रहना चाहिए और उनके परामर्शानुसार अपनी जांच आदि करवाते रहना चाहिए ताकि बीमारी को अधिक पनपने से रोका जा सके।
यदि जांच के दौरान शुरुआती लक्षण दिखायी दें और उनका समय रहते इलाज किया जाए ताकि आसानी से उस पर काबू पाया जा सके। इसलिए हम सबके लिए जरूरी है कि हम समय-समय पर अपनी जांच करवाते रहें। यह जांच नवजात शिशु के संसार में आते ही प्रारम्भ हो जाती है। बड़े नर्सिंग होम में तो बाल विशेषज्ञ होते हैं। जब भी डिलीवरी होती है तो वे बच्चे के शुरुआती लक्षणों से जांच लेते हैं कि सब ठीक ठाक है।
डिलीवरी के समय बाल विशेषज्ञ उपलब्ध न हो तो बच्चे के पैदा होने के 2-3 दिन के भीतर बच्चे को डाक्टर के पास ले जायें। इस प्रकार महीना खत्म होने से पहले, फिर दूसरे, चैथे, छठे, नौवें और बारहवें महीने में बच्चे को बार विशेषज्ञ को दिखाने ले जाते रहें ताकि बच्चे की वृध्दि, टीकाकरण पर पूरा ध्यान रहे।
कुछ असामान्य पर पूरा ध्यान रहे। कुछ असामान्य लक्षण होने पर समय रहते ध्यान दिया जा सके। दूसरे, तीसरे, चैथे साल में भी बच्चे को डाक्टर के पास ले जाते रहें। जब बच्चा थोड़ा और बड़ा होना शुरू होता है तब भी बच्चे को कम से कम साल में एक बार फिजिकल एग्जामिनेशन के लिए डाक्टर के पास ले जाएं ताकि बच्चों की लम्बाई व वजन आदि उम्र के हिसाब से ठीक है या नहीं और कुछ जरूरी टीकाकरण यदि आवश्यक हों तो लगवा लें।
बच्चों की दांत, आंख, कान, प्लस व हार्ट रेट, ब्लडप्रेशर, मधुमेह और श्वास प्रक्रिया की जांच करवाएं, बच्चों का शारीरिक विकास उम्र के मुताबिक कम हो तो डाक्टर से सलाह लें। उम्र बढ़ाने के साथ-साथ शरीर में कई बदलाव आते रहते हैं जैसे किशोरावस्था में हार्मोनल चेंजेंस आदि। इस अवस्था में बच्चे में कई बदलाव आते हैं। इन मानसिक और शारीरिक बदलावों को डाक्टर बच्चे और माता-पिता को बताकर गलतफहमी को दूर करने में मदद करते हैं।
जब शरीर का पूरा विकास हो जाता है तब भी कई समस्याएं आती हैं। छोटी-छोटी मुश्किलें तो शरीर आसानी से सह लेता है पर बिल्कुल नजरअंदाज करने पर छोटी मुश्किलें बड़ी हो जाती हैं। 40 वर्ष पश्चात् तो साल में एक बार कुछ चेकअप करवाते रहना चाहिए जैसे ब्लडप्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्राल, यूरिन अनालिसस, वजन, हीमोग्लोबिन, लीवर प्रोफाइल, लिपिड प्रोफाइल, चेस्ट एक्सरे, ईसीजी आदि करवाते रहना चाहिए। यदि कोई समस्या की शुरुआत हो तो समय पर इलाज परहेज कर उस पर काबू पाना आसान होता है।
महिलाओं को 40 वर्ष बाद पेप स्मीअर, बोन डेंसिटी टेस्ट करवाने चाहिए। अल्ट्रासाउंड वगैरह आवश्यकता होने पर करवा लेना चाहिए। 60 वर्ष पश्चात् अपने स्वास्थ्य का पूरी तरह ध्यान रखना चाहिए। कोई भी तकलीफ महसूस होने पर डाक्टर से सलाह लें और लगकर इलाज करवायें। बड़ी आयु में व्यायाम भी डाक्टर की सलाह अनुसार करें। इस आयु में अपना लाइफस्टाइल एक्टिव रखें। आलस्य को दूर रखें। अपने काम स्वयं करें। योगाभ्यास और मेडिटेशन से तनावों पर काबू पायें।