बाद में जमीन खरीदने वाला अधिग्रहण प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली
सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ‘भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने का अधिकार सिर्फ जमीन के मूल मालिक को है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि बाद में जमीन खरीदने वाले व्यक्ति को जमीन के अधिग्रहण को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की अपील को स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया है।
पीठ ने शिव कुमार (सुप्रा) और गॉडफ्रे फिलिप्स (आई) लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में पारित फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बाद के जमीन खरीदार के पास अधिग्रहण को चुनौती देने या अधिग्रहण की प्रक्रिया को समाप्त घोषित करने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि कानून के तहत सिर्फ जमीन के मूल मालिक को ही अधिग्रहण को चुनौती देने का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसके तहत बाद में जमीन खरीदने वाले की याचिका पर अधिग्रहण की प्रक्रिया को समाप्त मान लिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले को देखने से लगता है कि उसने भूमि अधिग्रहण अधिकारी द्वारा पेश उन तथ्यों को दरकिनार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि संबंधित जमीन पर 12 जुलाई, 2004 को ही कब्जा कर लिया गया।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने डीडीए की उन दलीलों की भी अनदेखी कर दी, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता बाद के जमीन खरीददार हैं, ऐसे में उन्हें अधिग्रहण को चुनौती देने या अधिग्रहण प्रक्रिया को समाप्त घोषित करने की मांग करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कानूनी प्रावधानों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले को कानूनी तौर पर सही नहीं ठहराया जा सकता है, ऐसे में उसे रद्द किया जाता है।
शीर्ष न्यायालय ने यह फैसला डीडीए की ओर से उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। डीडीए ने नरेंद्र कुमार जैन व अन्य के मामले में पारित उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने जैन व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 की धारा 24(2) के अधिग्रहण प्रक्रिया को समाप्त मान लिया था।