बैंक में नौकरी से खालिस्तानी आतंकवादी, कौन था पाक में मारा गया परमजीत सिंह पंजवार
नई दिल्ली
पाकिस्तान के लाहौर में अज्ञात हमलावरों ने खालिस्तान कमांडो फोर्स के प्रमुख आतंकवादी परमजीत सिंह पंजवार की गोली मारकर हत्या कर दी। 90 के दशक में खौफ का दूसरा नाम परमजीत पंजाब में उग्रवाद की रीढ़ हुआ करता था। यह भारत के मोस्ट वांटेड क्रिमिनलों में एक था। भारत-पाक सीमा के पास में जन्मा परमजीत पंजवार अक्सर चोरी-छिपे पाकिस्तान जाकर उग्रवादियों के साथ मिलकर भारत के खिलाफ साजिश रचता रहा। हालांकि पहले से ही वह ऐसा नहीं था। 1989 में केसीएफ प्रमुख बनने से पहले परमजीत केंद्रीय सहकारी बैंक का मामूली सा कर्मचारी हुआ करता था। हरमिंदर सिंह संधू की हत्या समेत भारत में कई हिंसक वारदातों में शामिल पंजवार के अंत के साथ उसके खौफ का साम्राज्य भी ढह गया। शनिवार सुबह हुई खालिस्तानी आतंकवादी परजीत सिंह पंजवार की हत्या से तीन साल पहले पाकिस्तान के लाहौर में ही खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के नेता हरमीत सिंह उर्फ हैप्पी पीएचडी की भी हत्या की जा चुकी है। उग्रवादियों के गढ़ कहे जाने वाले तरनतारन जिले के पंजवार गांव में जन्मे परमजीत सिंह पंजवार की हत्या के वक्त उम्र 60 साल थी। पंजवार का गांव भारत-पाकिस्तान सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। इसीलिए आतंकवाद के दौरान पंजवार अकसर चोरी-छिपे पाकिस्तान जाया करता था।
सहकारी बैंक में नौकरी
परमजीत उग्रवादियों में शामिल होने से पहले केंद्रीय सहकारी बैंक में काम करता था। केसीएफ के पूर्व प्रमुख सुखदेव सिंह सुखा उर्फ जनरल लाभ सिंह पंजवार भी उसी गांव के थे और उनके परिवार से अच्छे संबंध रहे। लाभ सिंह के काम का असर परमजीत पर काफी पड़ा और वह भी खालिस्तान की राह निकल पड़ा। 1989 में, पंजवार को उग्रवादी संगठन के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, जिसे खालिस्तान की सेना कहा जाता था।
संधू की हत्या समेत कई हिंसक वारदात
केसीएफ प्रमुख बनने के बाद परमजीत का नाम देश में कई हिंसक वारदातों में आया। उग्रवादियों और एआईएसएसएफ नेताओं के बीच मतभेदों के बीच अमृतसर में अखिल भारतीय सिख छात्र संघ (एआईएसएसएफ) के तत्कालीन महासचिव हरमिंदर सिंह संधू की हत्या करने के पीछे भी परमजीत का ही हाथ था। सिख लेखक और विचारक सरबजीत सिंह घुमन का कहना है कि सोहन सिंह के नेतृत्व वाली पंथिक समिति में केसीएफ के प्रतिनिधि के रूप में, पंजवार ने सिख आतंकवादी और राजनीतिक समूहों द्वारा 1992 के विधानसभा चुनावों का बहिष्कार सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पकड़े जाने के डर में भागा पाक
जब पंजवार को लगने लगा कि पंजाब में आतंकवाद के लिए परिस्थितियां अब अनुकूल नहीं रहीं, तो वह स्थायी रूप से पाकिस्तान भाग गया और फिर कभी वापस नहीं आया। अधिकारियों के मुताबिक, पंजवार अनधिकृत रूप से पाकिस्तान में रह रहा था। वह भारत में सबसे वांछित आतंकवादियों में से एक था।
हत्या से पूर्व उग्रवादियों में खौफ
पंजवार के साथ काम करने वाले एक पूर्व उग्रवादी कंवरपाल सिंह ने कहा, "उनकी हत्या की खबर निश्चित रूप से चौंकाने वाली है। वह कई सालों से निष्क्रिय था। मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता था क्योंकि हमने 90 के दशक की शुरुआत में उग्रवाद के चरम दिनों के दौरान पंथिक समिति की छत्रछाया में एक साथ काम किया था। उसके हत्यारों की पहचान एक रहस्य है, लेकिन निश्चित रूप से वे सिख दुश्मन हैं।”
कहां है परिवार
पिछले साल सितंबर में, पंजवार ने अपनी पत्नी पलजीत कौर को खो दिया, जो जर्मनी में अपने बेटों शाहबाज़ सिंह और मनवीर सिंह के साथ रह रही थीं। अमेरिकी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और दल खालसा ने उनकी पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहयोग से स्वर्ण मंदिर परिसर में एक समारोह का आयोजन भी किया।