रूस से सस्ता तेल खरीदी से भारत को हुआ फयदा लेकिन व्यापार घाटा अब 101.02 अरब डॉलर
नईदिल्ली
अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध का सामना कर रहा रूस भारत को रियायती कीमतों पर तेल निर्यात कर रहा है. भारत भी अमेरिकी चेतावनी और आर्थिक प्रतिबंधों को नजरअंदाज करते हुए भारी मात्रा में रूसी तेल आयात कर रहा है. भारत का कहना है कि जहां से भी उसे रियायती कीमतों पर तेल मिलेगा, वहां से वह खरीदेगा. सस्ता तेल खरीदने की वजह से भारत का रूस के साथ व्यापार तो बढ़ा है लेकिन यह भारत के पक्ष में नहीं है.
दरअसल, रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा सात गुना बढ़कर 34.79 अरब डॉलर हो गया है. किसी भी देश के लिए व्यापार संतुलन होना बहुत जरूरी है. यानी सभी देशों की यह कोशिश होती है कि अन्य देशों के साथ उसका व्यापार घाटा कम से कम हो.
चूंकि, दो देशों के बीच ट्रेड डील आमतौर पर डॉलर में होती है. ऐसे में ज्यादा व्यापार घाटा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है.
रूस के साथ भारत के रिकॉर्ड व्यापार घाटे का प्रमुख कारण बंपर तेल आयात है. व्यापार घाटा का यह आंकड़ा इसलिए भी भारत के लिए चिंताजनक है क्योंकि भारत का व्यापार घाटा अब 101.02 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया है. ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत का व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर पार किया है. जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात ज्यादा करता है तो उसे व्यापार घाटा कहते हैं. यानी भारत रूस को सामान बेच कम रहा है और खरीद ज्यादा रहा है.
रूस के साथ व्यापार घाटा उच्चतम स्तर पर
रिपोर्ट के मुताबिक, कच्चे तेल के लिए रूस पर बढ़ती निर्भरता के कारण भारत का रूस के साथ व्यापार घाटा दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. भारत का सबसे ज्यादा व्यापार घाटा चीन के साथ है.
डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स डेटा के मुताबिक, अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के बीच भारत का चीन के साथ सबसे ज्यादा 71.58 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हुआ. जबकि रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा 34.79 अरब डॉलर का रहा. वित्तीय वर्ष 21-22 की तुलना में रूस के साथ व्यापार घाटा में सात गुना बढ़ोतरी हुई है. पिछले वित्तीय वर्ष यह व्यापार घाटा सिर्फ 4.86 अरब डॉलर था. इस अवधि में रूस से कुल आयात में दो तिहाई से ज्यादा लगभग 37.27 अरब डॉलर का सिर्फ तेल आयात हुआ है.
भारत-रूस के बीच व्यापार उच्चतम स्तर पर
क्रूड ऑयल के लिए रूस पर बढ़ती निर्भरता के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार उच्चतम स्तर पर है. अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 के बीच दोनों देशों के बीच लगभग 37.27 अरब डॉलर का रिकॉर्ड व्यापार हुआ. लेकिन इसमें भारत का निर्यात 10 प्रतिशत से भी कम है. यानी भारत का रूस के साथ व्यापार लगभग एकतरफा है.
दोनों देशों के बीच रिकॉर्ड व्यापार का बड़ा कारण भारत का रूसी तेल आयात है. रूस-यूक्रेन युद्ध के पहले रूस भारत के टॉप 20 ट्रेड पार्टनर में भी नहीं था. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बंपर तेल निर्यात के कारण रूस अब भारत का पांचवां सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है.
तेल व्यापार की बात करें तो रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत 60 फीसदी से ज्यादा तेल मिडिल ईस्ट कंट्री से आयात करता था. उस वक्त भारतीय तेल बाजार में रूसी तेल की हिस्सेदारी एक फीसदी से भी कम थी. लेकिन पिछले लगातार छह महीने से रूस भारत के लिए टॉप ऑयल सप्लायर बना हुआ है. यहां तक कि मार्च महीने में भारत ने दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश चीन से भी ज्यादा रूसी तेल खरीदा है.
तेल और हथियार का सबसे बड़ा निर्यातक
वर्तमान में रूस भारत के लिए तेल और हथियार का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. मार्च महीने में भारत ने रूस से रिकॉर्ड 1.64 मिलियन बैरल प्रति दिन कच्चा तेल खरीदा. रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय बाजार में रूसी तेल की हिस्सेदारी 34 प्रतिशत हो गई है.
वहीं, दुनियाभर में हथियारों की आयात-निर्यात पर नजर रखने वाली स्वीडिश संस्था SIPRI के मुताबिक, भारत को सबसे ज्यादा हथियार रूस ने निर्यात किया है. 2013-2017 के बीच हथियार आयात की तुलना में 2018-22 में हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी भले ही कम हुई है. इसके बावजूद रूस भारत के लिए टॉप हथियार सप्लायर है. 2018 से 2022 के बीच भारत के कुल हथियार आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 45 प्रतिशत रही.
रूस को क्या-क्या बेचता है भारत
भारत रूस को सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग एवं इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े सामान, कृषि उत्पाद और फार्मास्यूटिकल्स प्रोडक्ट निर्यात करता है. अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 के बीच भारत ने लगभग 40 करोड़ डॉलर का फार्मास्यूटिकल्स उत्पाद रूस को बेचा है. वहीं, ऑर्गेनिक केमिकल का निर्यात लगभग 27.5 करोड़ डॉलर का रहा. भारत ने लगभग 10 करोड़ डॉलर की कीमत का चाय और कॉफी निर्यात किया है.
भारत के लिए क्यों है चिंता का विषय
दरअसल, रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लागू है. इसलिए भारत रूस को भुगतान के लिए अन्य विदेशी मुद्राओं का इस्तेमाल करता है. भारत रुपये-रूबल मैकेनिज्म पर व्यापार करने के लिए जोर देता है. लेकिन रूसी बैंक रुपये में व्यापार करने से कतराते हैं. क्योंकि भारत से रूस का आयात काफी कम है. इस कारण व्यापार संतुलन काफी हद तक रूस के पक्ष में झुका हुआ है.
इस असंतुलित व्यापार को पाटने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कई बार इस मुद्दे को उठा चुकी हैं. हाल ही में समाचार एजेंसी ब्लूमर्ग को दिए एक इंटरव्यू में निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट रूप से कहा था कि रियायती रूसी तेल खरीद के लिए जरूरी है कि रूस भुगतान माध्यम में सुधार करें.
इसके अलावा हाल ही भारत दौरे पर आए रूसी प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रुपये-रूबल मैकेनिज्म पर विस्तारपूर्वक चर्चा की. हालांकि, रूसी उप प्रधानमंत्री ने इस असंतुलित व्यापार को पाटने के लिए 500 से ज्यादा भारतीय उत्पादों को आयात करने का प्रस्ताव दिया है.
व्यापार घाटा से कैसे प्रभावित होती है अर्थव्यवस्था
चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है. जब किसी देश की वस्तु और सेवाओं का आयात मूल्य उसके वस्तु और सेवाओं के निर्यात मूल्य से ज्यादा हो जाता है तो उसे चालू खाते में घाटा कहते हैं. इसकी गणना जीडीपी के फीसदी में की जाती है. जब व्यापार घाटा बढ़ता है तो चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाता है.
व्यापार घाटे से विदेशी मुद्रा का संकट पैदा होने का खतरा रहता है क्योंकि कोई भी देश विदेशी मुद्रा की मदद से ही अन्य देशों से वस्तु या सेवाओं का आयात करता है. इसका सीधा असर देश की आर्थिक स्थिति, रोजगार सृजन के साथ मुद्रा के वैल्यू पर भी पड़ता है.