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मोहिनी एकादशी का है ग्रहण से संबंध, जानिए महत्व और मुहूर्त

हर साल कई ग्रहण लगते हैं. इसमें सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण होते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर चांद और सूरज को ग्रहण क्यों लग जाता है. वैज्ञानिक तौर पर इसके कारण बताए गए हैं. लेकिन ग्रहण लगने का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से भी जुड़ा है.

इस एकादशी का है ग्रहण से संबंध

हर महीने दो एकादशी तिथि (शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष) पड़ती है. इस तरह से पूरे साल 24 और अधिकमास होने पर कुछ 26 एकादशी तिथि पड़ती है. इन सभी एकादशी तिथि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है और सभी का अपना विशेष महत्व भी होता है. पूरे साल में पड़ने वाली सभी एकादशी का व्रत और पूजन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. लेकिन सभी एकादशी में एक एकादशी ऐसी होती है, जिसका संबंध ग्रहण से होता है. जी हां, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया था. इसलिए इसे मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह भगवान विष्णु का एकमात्र ऐसा अवतार है, जिसमें उन्होंने स्त्री रूप धारण किया. लेकिन मोहिनी एकादशी का ग्रहण लगने से क्या संबंध है, आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

जब भगवान विष्णु ने लिया मोहिनी अवतार

जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो समुद्र से 14 बहुमूल्य रत्न निकले, जिसे देवताओं और असुरों ने सर्वसम्मति से बांट लिया गया. लेकिन इसमें अमृत कलश भी निकला. अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद छिड़ गया. तब भगवान विष्णु को एक सुंदर स्त्री के रूप में मोहिनी अवतार लेना पड़ा. कहा जाता है कि भगवान विष्णु का ये अवतार अत्यंत कामुक और सुंदर था. मोहिनी को देख असुरों की आंखें भी उनपर टिकी रह गई और असुर उसपर मोहित हो गए. मोहिनी ने देवताओं और असुरों से विवाद को सुलझाने की गुजारिश की और इस तरह से असुरों ने अमृत कलश मोहिनी को दे दिया. मोहिनी ने कहा कि वह अमृत को देवताओं और असुरों के बीच बराबर में वितरित करेगी. इस तरह से देवता ओर असुर सभी अलग-अलग पंक्ति में बैठ गए. मोहिनी देवताओं को अमृत कलश से अमृत पिलाने लगी और असुरों को अमृत देने का नाटक करती रही. इधर असुर मोहिनी के रंग-रूप को देखकर मोहित थे और उन्हें लग रहा था वे अमृत पी रहे हैं.

जब देवताओं की पंक्ति में बैठ गया असुर

देवताओं की पंक्ति में छल से एक असुर बैठ गया और अमृत पान करने लगा. लेकिन सूर्य और चंद्र की नजर उसपर पड़ गई और उन्होंने उसे पहचान लिया. सूर्य और चंद्र ने भगवान विष्णु को उस असुर के बारे में बताया दिया.

इस कारण लगता है सूर्य और चंद्र को ग्रहण

भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर अपने सुदर्शन च्रक से उस असुर का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन असुर अमृत पान कर चुका था, इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई. इसी असुर के सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाया. सूर्य और चंद्र ने उस असुर का भेद उजागर किया था. इस कारण राहु-केतु, सूर्य और चंद्रमा से द्वेष रखता है और बदला लेने के लिए अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा को ग्रास (निकलने) करने आते हैं, जिस कारण ही ग्रहण लगता है.

सनातन धर्म में वैशाख का माह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस माह में कई महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं. वहीं वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी का संबंध भगवान जगतपति श्री हरि विष्णु से है.

धार्मिक मान्यता के मुताबिक, समस्त पाप और दुखों का नाश करने वाली तथा धन सौभाग्य का आशीर्वाद देने वाली यह एकादशी मानी जाती है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस बार मोहिनी एकादशी का व्रत 1 मई को रखा जाएगा, जिसका शुभ मुहूर्त 30 अप्रैल रात 8:28 पर शुरू होकर 1 मई रात 10:09 पर इसका समापन होगा.

भगवान विष्णु ने लिया था मोहिनी का अवतार
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की विधि विधान से पूजा आराधना की जाती है. मान्यता है कि सृष्टि को असुरों से बचाने के लिए इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था. एक कथा के मुताबिक, जब समुद्र मंथन चल रहा था तब उस दौरान अमृत निकला था. तब भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा के लिए मोहिनी एकादशी के दिन मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मायाजाल में फंसा कर सभी देवी देवताओं को अमृत धारण कराया था.

मोहिनी एकादशी का महत्व
 मोहिनी एकादशी का व्रत इस साल 1 मई को रखा जाएगा. इस दिन श्री हरि विष्णु ने असुरों के नाश के लिए मोहिनी का रूप धारण किया था. एकादशी के दिन विधि-विधान पूर्वक श्री हरि विष्णु का पूजा आराधना करने से समस्त पापों का नाश होता है. घर में सुख शांति धन ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

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