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बोफोर्स की लड़ाई में वीपी सिंह के सारथी थे सत्यपाल मलिक, पलट दी थी प्रचंड बहुमत वाली केंद्र सरकार

 नई दिल्ली

बात 1984 की है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के करीब तीन महीने के अंदर 1984 के दिसंबर में हुए लोकसभा चुनावों में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अगुवाई में कांग्रेस ने 404 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल की थी। नई सरकार में राजीव गांधी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) को वित्त मंत्री बनाया था। बाद में 1987 के जनवरी में उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया लेकिन बोफोर्स तोप सौदे में दलाली और भ्रष्टाचार से खफा होकर वीपी सिंह ने अप्रैल 1987 में न केवल केंद्र सरकार से इस्तीफा दे दिया था बल्कि राजीव गांधी की सरकार को उखाड़ फेंकने का जिम्मा भी उठा लिया था। 1989 के चुनावों में कांग्रेस महज 197 सीटों पर सिमट गई थी।

कांग्रेस और केंद्र सरकार से इस्तीफा देने के बाद वीपी सिंह ने तब अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान के साथ मिलकर जन मोर्चा बनाया था। इसी बैनर के तहत वह देशभर में राजीव गांधी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनसभाएं कर रहे थे। बाद में उन्होंने अक्टूबर 1988 में करीब आधा दर्जन दलों को मिलाकर जनता दल का गठन किया था। इससे पहले ही उन्हें कई राजनेताओं और कई दलों का समर्थन मिलने लगा था। इनमें से अधिकांश या तो कांग्रेस के नेता थे या कांग्रेस से निकले लोग थे।

मेरठ में की थी वीपी सिंह की अगुवानी:
1988 के शुरुआती दिनों में सर्दी के मौसम में वीपी सिंह अपने साथियों के साथ पश्चिमी यूपी के बड़ौत में जन मोर्चा की पहली बड़ी जनसभा करने पहुंचे थे। उस वक्त 40 वर्षीय सत्यपाल मलिक ने जाट लैंड पर वीपी सिंह की अगुवानी की थी। भीड़ हजार से ज्यादा नहीं रही होगी फिर भी मंच पर सत्यपाल मलिक को अरुण नेहरू और रामधन के साथ बैठाया गया था। यह इस बात की तस्दीक थी कि जाट लैंड समेत अन्य हिस्सों में सत्यपाल मलिक की जिम्मेदारी और ओहदा बढ़ने वाला है।

राज्य सभा से दे दिया था इस्तीफा:
उस वक्त मलिक कांग्रेस से दूसरी बार राज्यसभा सांसद थे। 1989 के अगस्त आते-आते वीपी सिंह ने देश में राजीव गांधी और कांग्रेस के खिलाफ हवा बना दी थी। अगस्त 1989 में विपक्षी दलों के सभी सांसदों ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। राज्यसभा से इस्तीफा देने वालों में सत्य पाल मलिक तब इकलौते सांसद थे।

वीपी सिंह की सरकार में अहम जिम्मेदारी:
वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वीपी सिंह के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे। 1989 के चुनाव में जनता दल ने उन्हें अलीगढ़ से उतारा था। अलीगढ़ से चुनाव जीतने के बाद वीपी सिंह की सरकार में मलिक को संसदीय कार्य और पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया था। वीपी सिंह की सरकार में कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार छोड़कर आए मुफ्ती मोहम्मद सईद को तब गृह मंत्री और आरिफ मोहम्मद खान को ऊर्जा और नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया था।

लोहिया-राज नारायण से थे प्रभावित:
1946 में मेरठ में जन्मे सत्य पाल मलिक शुरुआती वर्षों में सोशलिस्ट पार्टी की युवा शाखा समाजवादी युवजन सभा के सदस्य रह चुके थे। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी कैप्टन अब्बास अली से सियासी ट्रेनिंग ली थी। छात्र-जीवन में ही फायरब्रांड नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मलिक समाजवादी नेता राज नारायण और राम मनोहर लोहिया से खासे प्रभावित रहे हैं। 1970 तक आते-आते वह देश के सबसे बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह के खास लोगों में शुमार हो चुके थे।

चौधरी चरण सिंह के रहे खासम-खास:
सत्य पाल मलिक चरण सिंह की पार्टी लोक दल के महासचिव भी रह चुके हैं। वह यूपी विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं। कहा जाता है कि मोरारजी देसाई की सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह की सरकार बनवाने में मलिक ने इंदिरा गांधी के साथ वार्ता में अहम भूमिका निभाई थी। 1980 में जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार वापस आई तो मलिक को राज्यसभा में भेजा गया था। 1986 में उन्हें दोबारा राज्यसभा भेजा गया था लेकिन 1989 में उन्होंने वीपी सिंह का साथ देने के लिए कांग्रेस और राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था।

पांच दलों के रहे सिपहसालार:
जब 1990 में वीपी सिंह की सरकार गिरी और जनता दल का विभाजन हुआ तो मलिक चंद्रशेखर के साथ चले गए। बाद में फिर वह मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और 1996 में अलीगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। बाद में वह बीजेपी के साथी हो गए। इस तरह मलिक कुल पांच से ज्यादा दलों के सिपहसालार रह चुके हैं।

 

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