हरियाणा में 10 साल की ऐंटी-इनकम्बैंसी के बाद तीसरी बार सत्ता की रेस में उतरी भाजपा के लिए चुनावी राह आसान नहीं
नई दिल्ली
हरियाणा में 10 साल की ऐंटी-इनकम्बैंसी के बाद तीसरी बार सत्ता की रेस में उतरी भाजपा के लिए चुनावी राह आसान नहीं है। एक तरफ जाटों की नाराजगी है और वे गोलबंद दिख रहे हैं तो वहीं दलितों के भी एक हिस्से में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में सेंध लगा दी थी। इससे भाजपा की चिंता बढ़ गई है, जो 2014 से 2024 तक हरियाणा में 4 चुनाव जीत चुकी है। लेकिन यह पहला मौका है, जब वह एक तरह से अग्निपरीक्षा से गुजर रही है। इस बीच खबर है कि भाजपा ने जाट और दलित समुदाय की गोलबंदी की काट के लिए नई रणनीति बना ली है।
इसके तहत भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान खुद जुटे हैं। भाजपा गैर-जाट ओबीसी बिरादरियों में शामिल यादव, गुर्जर, सैनी, पाल, नाई, कुम्हार, खाती और कश्यप पर फोकस कर रही है। इसके अलावा ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी समुदाय के लोगों पर उसे समर्थन का भरोसा है। अग्निपथ स्कीम, किसान आंदोलन और फिर पहलवानों के आंदोलन के चलते जाटों का एक बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ लामबंद दिखता है। स्थिति यह है कि जाटों का कहना है कि आईएनएलडी और जेजेपी को वोट देना भी विभाजन होगा। ऐसे में भाजपा के खिलाफ आगे दिख रही कांग्रेस को ही वोट दिया जाए।
अब इसकी काट के लिए भाजपा ने विधानसभा वार प्लानिंग की है। खुद धर्मेंद्र प्रधान ये मीटिंगें ले रहे हैं। इन मीटिंगों में धर्मेंद्र प्रधान के साथ ही सीएम नायब सिंह सैनी भी रहते हैं। इनमें बताया जाता है कि कैसे भाजपा सरकार ने ओबीसी समुदाय के हित में कदम उठाए हैं। इसके अलावा कांग्रेस के मुकाबले ओबीसी वर्ग के लोगों को ज्यादा टिकट बांटे हैं। धर्मेंद्र प्रधान खुद ओबीसी हैं और सैनी को भी भाजपा ने गैर-जाट ओबीसी में पकड़ के लिए ही प्रमोट किया था। अब उसी को पार्टी आम लोगों के बीच ले जा रही है।
पार्टी का मानना है कि इस रणनीति के चलते वह यमुनानगर, अंबाला, पंचकूला, कुरुक्षेत्र, पानीपत, करनाल बेल्ट में सफल हो सकती है। इसके अलावा अहीरवाल कहलाने वाले रेवाड़ी, गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और भिवानी में भी उसे उम्मीद है। ऐसा ही जिला फरीदाबाद भी है, जहां से भाजपा को बढ़त की उम्मीद है। इस क्षेत्र में गुर्जरों की अच्छी आबादी है और इसके अलावा दूसरे राज्यों के प्रवासी भी बड़ी संख्या में रहते हैं।