बिहार की किस्मत बदलकर देश के अग्रणी राज्यों में लाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर की नई पार्टी बनेगी कल
पटना
बिहार की किस्मत बदलकर देश के अग्रणी राज्यों में लाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर की नई पार्टी गांधी जयंती पर बुधवार को बन जाएगी। चुनावी रणनीतिकार से पदयात्री बनकर दो साल से बिहार घूम रहे पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 को जन सुराज यात्रा शुरू की थी। पार्टी बनाने से पहले प्रशांत किशोर ने रविवार को मीडिया को बुलाया और कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी पार्टी वैसे उम्मीदवारों को टिकट देगी जो जनप्रतिनिधि वापसी के अधिकार (राइट टू रिकॉल) पर सहमति का हलफनामा देंगे। पीके को यह हलफनामा शपथ पत्र पर दस्तखत के साथ चाहिए ताकि अगर कोई चुनाव जीतकर विधायक बन गया और उसे जनता की व्यापक नाराजगी के कारण हटाना हो तो उससे इस्तीफा लिया जा सके।
प्रशांत किशोर ने विधानसभा कैंडिडेट पर लागू होने वाले राइट टू रिकॉल का रोडमैप भी बताया है लेकिन इस प्रक्रिया को शुरू करने का अधिकार विधानसभा में जन सुराज के संस्थापक सदस्यों के हाथ में डाल दिया गया है। उन्होंने कहा- “देश में पहली बार किसी राजनीतिक दल ने संविधान में लिखा है राइट टू रिकॉल। जो जन सुराज के टिकट पर चुनाव लड़ेगा, उसको कानूनन साइन करके शपथ पत्र देना पड़ेगा। विधानसभा में जन सुराज के एक तिहाई संस्थापक सदस्यों ने अगर आपके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला दिया और वोटिंग में अगर आपने संस्थापक सदस्यों का विश्वास खो दिया तो आपको रिजाइन करना पड़ेगा। शपथ पत्र देने के बाद ही आप जन सुराज से लड़ पाएंगे। इस बात को संविधान में लिख रहा है जन सुराज.”
अपने यहां जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, वो कोर्ट से दोषी साबित होने के बाद जेल चले जाते हैं लेकिन खुद को निर्दोष बताने से नहीं चूकते। बहुत सारे देशों में तो आरोप लगने पर ही नेता इस्तीफा दे देते हैं। हमारे यहां सरकार या विपक्ष की साजिश के नाम पर घोटाला और गंभीर अपराध के आरोपी आराम से राजनीति करते हैं। ऐसे माहौल में एक विधायक जन सुराज के राइट टू रिकॉल का पालन करके हंसते-खेलते इस्तीफा देगा या पार्टी छोड़कर कोर्ट जाएगा, ये समझना मुश्किल नहीं है।फिर भी प्रशांत किशोर ने एक एजेंडा तो सामने रख ही दिया है जिसे उनसे पहले अन्ना हजारे और वरुण गांधी भी उठा चुके हैं। वरुण गांधी ने लोकसभा में प्राइवेट बिल भी पेश कर दिया था। यही नहीं, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को हटाने वाला राइट टू रिकॉल कानून बनाने के लिए दो दशक से जनजागरण कर रहे राहुल मेहता ने तो राइट टू रिकॉल पार्टी नाम से दल बनाया है। चुनाव आयोग ने इसे मान्यता दी है और गुजरात चुनाव में इसे पूरे राज्य में प्रेशर कुकर चुनाव चिह्न आवंटित किया था। भारत में राइट टू रिकॉल का कानून पंचायत स्तर पर कुछ राज्यों में लागू है। बाहर कुछ देशों में ये अलग-अलग स्तर पर लागू है। लेकिन राइट टू रिकॉल के प्रयोग या सफलता का ट्रैक रिकॉर्ड ना देश में अच्छा है और ना विदेश में। गिने-चुने देश में ही प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या सांसद स्तर पर राइट टू रिकॉल लागू है।
भारत में सांसद, विधायक और विधान पार्षद पर सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित होने के कई कानून हैं। क्रिमिनल केस में 2 साल से ऊपर की सजा, दलबदल, गलत आचरण के कारण सदन की समिति की सिफारिश जैसी स्थितियां पैदा होने पर सदस्य अयोग्य घोषित होता है। लेकिन राइट टू रिकॉल कुछ राज्यों में पंचायत स्तर पर लागू है जिससे तहत मुखिया या ग्राम प्रधान, उप-मुखिया या उप-प्रधान, सरपंच या उप-सरंपच और वार्ड सदस्य को एक प्रक्रिया के तहत वोटर हटा सकते हैं। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह के प्रावधान हैं लेकिन काम की बात ये है कि पंचायत स्तर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को जनता चाहे तो एक प्रक्रिया से हटा सकती है।
उत्तर प्रदेश में ग्राम सभा की बैठक में दो तिहाई बहुमत से रिकॉल हो सकते हैं प्रधान
उत्तर प्रदेश में 15 दिन की नोटिस पर बुलाई गई ग्राम सभा की बैठक में मौजूद वोटरों के दो तिहाई बहुमत से प्रधान या उप प्रधान को उनके चुनाव के कम से कम दो साल बाद हटाया जा सकता है। ग्राम सभा की बैठक के लिए एक तिहाई वोटर का कोरम है। अगर कोरम ना पूरा हो या अविश्वास प्रस्ताव गिर जाए तो अगले एक साल फिर हटाने की प्रक्रिया पर रोक लग जाती है। ब्लॉक प्रमुख या जिला पंचायत अध्यक्ष को हटाने के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। क्रिमिनल केस में सजा या भ्रष्टाचार के मामलों में सरकार निर्धारित प्रक्रिया के तहत उन्हें हटा सकती है।