आज कुछ अजीब बात आपके सामने रख रहा हूं : राधावल्लभ शारदा
न्यायिक व्यवस्था पर पत्रकारों के हित में लड़ाई लड़ने वाले राधावल्लभ शारदा जी की कलम से...
न्यायिक व्यवस्था पर पत्रकारों के हित में लड़ाई लड़ने वाले राधावल्लभ शारदा जी की कलम से…
हमारे देश मतलब वो भारत देश जिसे आजादी दिलाने के लिए कितने लोगों ने बलिदान दिया उनकी संख्या केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के पास नहीं होगी।
आजादी के बाद के 65 वर्ष तक
दे दी आजादी खड़क बिना ढाल…साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल… नई पीढ़ी को इतना ही बताया गया।
महाराणा प्रताप, शिवाजी, रानी लक्ष्मीबाई, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भामाशाह जैसी अनेक हस्तियों को किताबों से बाहर कर दिया।
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुलतान है मत चूके चौहान।
सिर्फ और सिर्फ नेहरु परिवार और आगे जाकर गांडी से गांधी परिवार तक सीमित कर दिया।
महात्मा गांधी की नकल की अन्ना हजारे ने और मजे में दोनों के समय रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू और शहीद भगतसिंह को अपना आदर्श मानने वाले केजरीवाल। जितना याद आया लिखा….
अब बात भ्रष्टाचार की तो समझने बाली बात है सरकार किसी भी राजनीतिक दल की हो उसे सरकारी दफ्तरों में बैठे बाबू और अफसर चलाते है। ये ही बाबू और अफसर नेताओं को बगैर मांगें करोड़पति बनने की टिप्स देते हैं। जितने ज्यादा भ्रष्ट सरकार को चलाने वाले अधिकारी और कर्मचारी हैं वो सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं है बरन हमारी न्याय व्यवस्था में भी है और इन भ्रष्ट तंत्र से जो नगद राशि आती है उस नगद राशि का लुत्फ परिवार के मुखिया के साथ सभी सदस्य लेते हैं।
एक बार मेरी एक जज महोदय की पत्नी से चर्चा चल रही थी, तब उन्होंने कहा कि उनके घर में सुई की भी जरूरत होती है तो साहब का रीडर लाकर दे देता था उसके एवज में कोई राशि नहीं देनी पड़ती थी। हो सकता है कल या आज के भास्कर न्यूज पेपर में एक समाचार पढ़ा… जिसमें जज साहब ने निर्णय सुनाया कि अवैध रूप से कमाई करने वाले पर ही कार्यवाही होनी चाहिए।
जज साहब है उनके निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती और न ही आलोचना की जा सकती हैं।
एक जज महोदय ने एक प्रकरण में अपना निर्णय सुनाया कि मिलते-जुलते नाम का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
मान लीजिए देश के कुछ राजनीतिक दलों ने मिलकर आई एन डी आई ए नाम पर एक गठबंधन तैयार किया जनता के पास संदेश गया इंडिया जो कुछ समय बाद इंडी के रूप में चलने लगा, तृणमूल कांग्रेस, महाराष्ट्र में शिवसेना के आगे पीछे कुछ और लग गया। इसी तरह के और कई उदाहरण मीडिया संस्थानों में मिल जायेंगे जैसे दैनिक नई दुनिया,नई दुनिया, नवीन दुनिया, हजारों उदाहरण मिल जाएंगे जो मिलते-जुलते नाम से है होटल, शहर के नाम, गांव के नाम, नेताओं के नाम, स्कूलों, कालेज, बाजार के नाम, राधावल्लभ शारदा, राधावल्लभ पुरोहित, प्रवाल सक्सेना, राजेश सक्सेना आदि आदि।
एक निर्णय जबलपुर हाईकोर्ट के जज साहब ने निर्णय दिया कि मिलते-जुलते नाम से जनता भ्रमित होती है तो जिन जज महोदय ने निर्णय सुनाया उनकी जाति के कई लोग मिल जाएंगे दूर मत जाइये उनके बच्चे भी अपने नाम के साथ अपनी जाति लिखते हैं।
मैं जहां तक समझता हूं कि यदि किसी का नाम हरी सिंह है तो अंग्रेजी भाषा में भी हरी सिंह ही लिखेंगे न की ग्रीन लायन।
देखने में आया है कि जिला न्यायालय के आदेश को हाईकोर्ट बदल देता है तो हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट बदल देता है।
कानून की धाराओं पर न्याय नहीं सबूतों पर निर्णय लिया जाता है।
ये भारत देश है इसमें जनता को मौलिक अधिकार है बोलने की स्वतंत्रता है।