अर्थ के अभाव से जूझने वाली जयपाली के घर की अर्थव्यवस्था ही बदल गई
भोपाल
कोई भी जरिया न हो, तो दो घड़ी रूकते हैं…….
क्युंकि हौसलों के आगे, तो पर्वत भी झुकते हैं….
जीवन की दुश्वारियां कभी-कभी निराश कर देती हैं। निराश मन को कहीं से जरा सा भी सहारा मिल जाये, तो जीने की राह आसान हो जाती है। छिंदवाड़ा जिले की धूसावानी ग्राम पंचायत के मोयापानी गांव की श्रीमती जयपाली मरकाम के साथ भी यही हुआ। पति के साथ मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर करने वाली जयपाली के जीवन में कभी ऐसा वक्त भी आया, कि उसके पास खाने तक के पैसे नहीं थे। खाली पेट सोने की नौबत भी आयी। जिंदगी के बड़े ही बुरे दिनों से गुजरीं थीं वो। पर अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।
कभी पति के साथ दिहाड़ी मजदूरी करने वाली श्रीमती जयपाली अब एक कपड़ा व्यापारी बन चुकी है। कपड़े के व्यापार से उनके घर की अर्थव्यवस्था ही पूरी तरह बदल गई है। जयपाली अपने कपड़ा व्यापार से हर महीने 15 रूपये से अधिक कमा रहीं है। उनके बच्चे अब सरकारी प्री-मेट्रिक होस्टल में रहकर पढ़ रहे हैं। पति की दो बहनों में से बड़ी को जयपाली ने प्राईवेट जॉब में लगवा दिया है और छोटी को ब्यूटी पार्लर का कोर्स करवा रही हैं। जयपाली के सास-ससुर भी साथ ही रहते हैं।
उनके इस संयुक्त परिवार का गुजर-बसर अब इसी कपड़ा दुकान से हो रहा है। यही नहीं, जयपाली ने अपने बढ़ते कारोबार के चलते क्षेत्र के सभी हाट बाजारों में अपनी चलित कपड़ा दुकान लगाने के लिये एक ऑटो भी खरीद लिया है। ऑटो चलाने के लिये एक ड्राईवर भी रख लिया है। जयपाली और उसके पति हाट बाजारों में दुकान लगाने जाते हैं। ऐसे वक्त में भी जयपाली की तामिया ब्लॉक मुख्यालय में स्थायी कपड़ा दुकान बंद नहीं होती। अपनी दुकान में बैठने के लिये जयपाली ने 200 रूपये रोजनदारी पर एक व्यक्ति को रोजगार पर रख लिया है।
श्रीमती जयपाली मरकाम जनजातीय वर्ग से हैं। उनका जीवन हमेशा कठिनाइयों से भरा रहा। गरीबी और संघर्ष के बीच उसने कई रातें भूखे पेट बिताई, लेकिन कभी हार नहीं मानी। अपने सपनों को हकीकत में बदलने की इच्छा और अपने परिवार को बेहतर जीवन देने की चाह उसके मन में हमेशा बनी रही। अपनी दशा सुधारने के लिये जयपाली राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ गयीं। वे गांव के "मां नैना आजीविका स्व-सहायता समूह" की सदस्य बन गयीं। समूह की बचत से उन्हें पहली दफा 10 हजार रूपये ऋण मिला, जिससे उन्होंने किराना दुकान खोली। दूसरी बार एक लाख रूपये ऋण मिला, जिससे जनरल स्टोर खोला।
तीसरी बार 3 लाख रूपये ऋण मिला, तो जयपाली ने इसमें अपनी जमापूंजी मिलाकर छोटी सी कपड़ों की दुकान खोल ली। शुरुआत में दुकान चलाना एक बड़ी चुनौती थी। न तो जयपाली के पास व्यापार का अनुभव था और न ही कोई बड़ी पूंजी, फिर भी, उसने अपने व्यापार को लगन से आगे बढ़ाया। आज अपनी मेहनत और समझदारी से जयपाली हर महीने 15 हजार रुपये कमा रही है। अपने बच्चों के लिए भी उसने अच्छी शिक्षा का इंतजाम कर दिया है। इतना ही नहीं, जयपाली ने अपनी दुकान में एक व्यक्ति को रोजगार दे दिया है, जो व्यापार चलाने में उसकी मदद भी करता है। जयपाली की सफलता का राज उसकी कभी न टूटने वाली उम्मीद और कड़ी मेहनत में छिपा है। आज वह एक सफल कपड़ा व्यापारी के रूप में जानी जाती है और अपने जनजातीय समुदाय के लिए एक प्रेरणापुंज बन गयी हैं।