असद अहमद का मकसद अतीक को छुड़ाना नहीं, बल्कि हमला कर सरकार की किरकिरी करना था
प्रयागराज
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित झांसी एनकाउंटर में मारे गए बदमाश असद और गुलाम माफिया डॉन अतीक अहमद के काफिले पर हमला करने वाले थे. उनकी मंशा अतीक अहमद को छुड़ाने की नहीं, बल्कि उसके साबरमती जेल से बाहर आने से रोकने की थी. उन्हें पक्का भरोसा था कि वह पुलिस के इतने बड़े काफिले पर हमला कर अतीक को छुड़ा नहीं पाएंगे. लेकिन यदि काफिले पर हमला हो गया तो उत्तर प्रदेश सरकार की किरकिरी जरूर हो जाएगी.
वहीं अतीक की जान को खतरा देखते हुए उसका जेल से बाहर आने जाने पर भी रोक लग जाएगी.पुलिस सूत्रों के मुताबिक असद को लग रहा था कि साबरमती जेल से प्रयागराज लाते समय या फिर वापस ले जाते समय पुलिस अतीक अहमद को गोली मार सकती है. ऐसे में वह चाहते थे सारी पेशी वीडियो कांफ्रेंसिंग से हो. किसी भी पेशी के लिए उसे जेल से बाहर नहीं जाना पड़े. उन्हें उम्मीद थी कि यदि अतीक के काफिले पर पांच 10 राउंड फायरिंग हो जाती तो डर का माहौल बन जाता. इसके बाद अतीक की जान के खतरे का मुद्दा उठ जाता और दोबारा उत्तर प्रदेश पुलिस उसे जेल से बाहर नहीं निकालती.
इससे योगी सरकार की खूब छीछालेदर भी हो जाती. पुलिस सूत्रों के मुताबिक बाप बेटे दोनों एक दूसरे की सुरक्षा की चिंता कर रहे थे. एक तरफ जहां असद जेल के बाहर रहकर अपने पिता को जेल के अंदर सुरक्षित करना चाहता था, वहीं जेल के अंदर बैठे अतीक ने बेटे की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने अबू सलेम और इसके ही जैसे अन्य मददगारों को दी थी. अतीक हर हाल में असद और शूटर गुलाम को सुरक्षित करना चाहता था.
इसलिए उसने दिल्ली और मुंबई में कई मददगारों की मदद भी ली. बताया जा रहा है कि 24 फरवरी को उमेश पाल की हत्या के एक दिन बाद तक असद प्रयागराज में ही रहा. वारदात के एक दिन बाद तक वह अपने एक जानकार के घर में छिप कर रहा. इसके बाद 26 फरवरी को वह बाइक पर सवार होकर कानपुर ओर यहां से 28 फरवरी को दिल्ली के आनंद बिहार बस अड्डे आ गया था.