जगदलपुर
बस्तर जिला मुख्यालय में स्थित वन विद्यालय के प्रजनन केंद्र से आखिरकार छत्तीसगढ़ केराजकीय पक्षी पहाड़ी मैना को आजाद करने का फैसला लिया गया है। कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान कार्यालय ने इसके लिए मुख्यालय से अनुमति मिल गई है। ज्ञात हो कि राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना के प्रजनन को लेकर 1992 से प्रयास शुरू हुआ था और अब तक कई करोड़ रुपए फूंक दिये जाने के बावजूद पहाड़ी मैना के नर-मादा का पहचान तक नहीं हो पाई, जिससे प्रजनन केंद्र में अब तक इसमें वन विभाग को कोई सफलता नही मिल सकी। जिसके बाद इस पर प्रश्र चिन्ह खड़े होने लगे थे।
उल्लेखनीय है कि मनुष्य की तरह हुबहु आवाज निकालने में माहिर पहाड़ी मैना को छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद राजकीय पक्षी का दर्जा मिला, इसके पहले से ही इस दुर्लभ पहाड़ी मैना के संरक्षण व संवर्धन को लेकर वन विद्यालय में एक विशाल पिजरा बनाकर प्राकृतिक माहौल तैयार कर प्रजनन केंद्र बनाकर इसमें तीन दशक पहले 6 पहाड़ी मैना को रखा गया था, जिसमें सभी की एक-एक कर मौत हो गई। वर्तमान में पिंजरे में कोलेंग क्षेत्र से लाए गए तीन मैना सोनू, मोनू व ऋतु शेष हैं, जिन्हें जंगल में छोड़ दिया जाएगा। जानकारों के मुताबिक पहाड़ी मैना को शोरगुल पसंद नहीं है। वन विद्यालय के चारों ओर शहरी क्षेत्र होने से शोरगुल होता है, इसलिए मैना के प्रजनन को लेकर वन विभाग को अब तक कोई सफलता नहीं मिल पायी।
वन विद्यालय स्थित पहाड़ी मैना प्रजनन केंद्र को कांगेर घाटी इलाके में स्थानांतरित करने की योजना बनायी गयी थी, लेकिन अधिकारी के तबादले के बाद यह योजना अधर में अटक गई। इसके बाद पहाड़ी मैना में एक विशेष तरह की चिप लगाकर छोड?े की भी योजना बनायी गयी, लेकिन उसमें अधिक खर्च होने के कारण यह योजना भी ठंड़े बस्ते चली गई। दुर्लभ राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना के संरक्षण व संवर्धन को लेकर मिली असफलता चिंता का विषय हो सकता है, इस दिशा में पक्षी वैज्ञानिको के साथ कारगर योजना बनाये जाने की आवश्यकता को नजरअंदाज नही किया जा सकता है।
कांगेरघाटी राष्ट्रीय उद्यान के संचालक धम्मशील गणवीर ने बताया कि वर्तमान में उद्यान क्षेत्र में मैना की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसे देखते हुए वन विद्यालय के प्रजनन केंद्र में रखे गए मैना को जंगल में छोड़ दिया जाएगा, इसके लिए तैयारी कर ली गयी है।