एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी
नई दिल्ली
एक देश एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। 18 हजार पन्नों की इस रिपोर्ट में एक साथ ही देश के सारे चुनाव कराने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में विभिन्न पक्षों के सुझावों को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा यह बताया गया है कि इसके क्या फायदें होंगे और क्या चुनौतियां रहेंगी। इसके तहत एक अहम सुझाव वोटरों से भी जुड़ा है कि उन्हें इलेक्टर फोटो आइडेंटिटी कार्ड यानी EPIC जारी किया जाए। इसके जरिए सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची काम करेगी।
इसके अलावा मतदाता का एक पहचान पत्र बनेगा और उसके आधार पर ही देश के सभी चुनावों में एक साथ मतदान कर सकेगा। देश या एक ही राज्य में अलग-अलग जगह मतदाता सूची में नाम होने की समस्या से भी मुक्ति मिल जाएगी। कमेटी की सिफारिश में कहा गया है कि पहले राउंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही कराए जाएं। इसके बाद दूसरे चरण में लोकसभा एवं विधानसभा के साथ ही पंचायतों और निकायों के चुनाव भी करा लिए जाएं। इसके बाद फिर सारे चुनाव हर बार एक साथ ही हो जाएं।
वन नेशन वन इलेक्शन वाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 'चुनाव आयोग ने बताया है कि उसे ईवीएम, वीवीपैट, पोलिंग कर्मचारियों, सुरक्षाकर्मियों, चुनाव सामग्री की जरूरत होगी।' इसके अलावा चुनाव आयोग का कहना है कि इसके लिए केंद्रीय एवं राज्य चुनाव समितियों के बीच समन्वय भी बनाना होगा और साथ मिलकर योजना तैयार करनी होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि 4 पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य जज ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है। इन लोगों का कहना है कि देश में अलग-अलग चुनाव कराना संसाधनों की बर्बादी है। इसके चलते नीतिगत पंगुता की स्थिति बनती है। इसके अलावा देश पर बड़ा सामाजिक और आर्थिक बोझ भी होता है।
इसके अलावा संवैधानिक जानकारों का कहना है कि इसके लिए संविधान में जो संशोधन करने होंगे, वह गैर-लोकतांत्रिक नहीं होंगे। इससे संविधान के मूल ढांचे का भी उल्लंघन नहीं होगा। यही नहीं जैसा कि भय दिखाया जा रहा है, इससे देश में शासन की राष्ट्रपति प्रणाली भी नहीं आएगी। एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि इससे राष्ट्रीय पार्टियों को ही महत्व मिलेगा। इसका जवाब देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय मतदाता इतना विवेक रखते हैं कि वे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों में अंतर कर सकें।