राजनीति

अडानी पर जोर न दें राहुल; रैली से पहले ही टेंशन में क्यों कर्नाटक कांग्रेस के नेता

कर्नाटक

कर्नाटक विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है और 10 मई को वोटिंग है। इस तरह राज्य में चुनाव के लिए एक ही महीने का वक्त बचा है और राहुल गांधी भी सक्रिय होते दिख रहे हैं। वह 10 अप्रैल को कोलार में एक रैली करने जा रहे हैं। यह स्थान इसलिए अहम है क्योंकि 2019 में उन्होंने यहीं पर एक रैली में मोदी सरनेम को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी थी, जिस पर उनके खिलाफ मानहानि का केस दर्ज हुआ था और उन्हें दो साल की सजा मिली है। राहुल गांधी अब भी मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक हैं और अडानी के मसले पर भी लगातार बोल रहे हैं।

हालांकि कांग्रेस के लिए मुश्किल यह है कि पार्टी के ही कुछ नेता राहुल गांधी की रणनीति से सहमत नहीं हैं। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि अडानी के मसले से कर्नाटक के चुनाव में कोई फायदा नहीं होगा। इन नेताओं का कहना है कि एक या दो बार अडानी का मसला उठाना ठीक है, लेकिन उसके पीछे नहीं पड़ा जा सकता। रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस के कुछ नेता मानते हैं का राहुल गांधी को कोलार से अपनी यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए। इन नेताओं का कहना है कि इससे भाजपा को एक पॉइंट मिल सकता है, जो कर्नाटक के चुनाव में फिलहाल बैकफुट पर है।

दरअसल कांग्रेस नेताओं की चिंता यह है कि कोलार में राहुल गांधी सूरत कोर्ट के फैसले पर बात कर सकते हैं। इसके अलावा पीएम नरेंद्र मोदी से गौतम अडानी के रिश्तों को लेकर आक्रामक हो सकते हैं। इस पर कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि इन मु्द्दों से पार्टी को चुनाव में खास फायदा नहीं होगा। इसकी बजाय स्थानीय मुद्दों और भाजपा सरकार पर करप्शन के आरोपों पर फोकस करना चाहिए। इन नेताओं का कहना है कि हमने राहुल गांधी की टीम को सलाह दी है कि वे अडानी के मुद्दे को न उठाएं। असल में यहां सबसे बड़ा मुद्दा तो बोम्मई सरकार का भ्रष्टाचार है।

मोदी बनाम राहुल हुआ मुकाबला तो कांग्रेस को नुकसान का डर

राहुल गांधी अकसर अपने ही हिसाब से मुद्दे उठाते रहे हैं। ऐसे में कई बार राज्य स्तर पर नेताओं को असहमति भी रही है। दरअसल कांग्रेस नेताओं की चिंता यह भी है कि राहुल गांधी की ओर से मोदी पर हमला बोलने से मुकाबला राष्ट्रीय स्तर का हो सकता है। मुकाबला यदि राहुल गांधी बनाम मोदी हुआ तो कांग्रेस को बैकफुट पर जाना पड़ सकता है। यही वजह है कि कर्नाटक कांग्रेस के नेता मानते हैं कि स्थानीय मुद्दे ही फायदा पहुंचाएंगे और राष्ट्रीय मसलों से दूर रहना चाहिए।

 

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