शीतल देवी को अर्जुन पुरस्कार के लिए बुलाया गया तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा
नई दिल्ली
कहते हैं हौसला अगर बुलंद तो मुश्किल से मुश्किल लक्ष्य भी बौना साबित हो जाता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है भारत बेटी शीतल देवी ने। जम्मू कश्मीर की एक छोटे गांव की रहने वाली शीतल ने बिना हाथों के देश के लिए पैरा एशियन गेम्स में मेडल जीतकर देश का परचम लहराया। पैरों से तीर-धनुष चलाने वाली शीतल देवी ने पिछले साल पैरा एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल अपने नाम किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति भवन में जब अर्जुन पुरस्कार के लिए उनका नाम लिया गया तो पूरा हॉल तालियां की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। हर कोई उन्हें अवॉर्ड लेते देख खुश हो रहे थे। उन्हें देखकर सिर्फ यही लग रहा था कि शारीरिक अक्षमता होने के बावजूद अगर मनोबल ऊंचा रखें तो मंजिल पाया जा सकता है।
विश्व की नंबर- 1 पैरा तीरंदाज शीतल देवी ने पैरा एशियन गेम्स दो गोल्ड और एक सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। एशियन गेम्स में धमाल मचाने के बाद जब शीतल वापस भारत आईं थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जज्बे को सराहा था। एशियन गेम्स में तीन मेडल जीतने के बाद अब शीतल इसी साल पेरिस पैरालिंपिक खेलों में अपने शानदार प्रदर्शन को दोहराने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
फोकोमेलिया बीमारी से पीड़ित हैं शीतल
शीतल देवी का जन्म जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के लोई धार गांव में हुआ था। शीतल के पिता पेशे से एक किसान हैं और उनकी मां घर संभालती हैं। शीतल से बचपन से ही फोकोमेलिया बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी में शरीर का विकास पूरी तरह से नहीं हो पाता है। इस कारण शीतल का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। हालांकि बाजू न होना शीतल के लिए दिव्यांगता अभिशाप नहीं बन पाया और उन्होंने अपने पैरों से तीर धनुष चलाकर दुनिया जीत ली।