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हमारी ट्रेनिंग ही कुछ ऐसी…CJI चंद्रचूड़ ने बताया क्यों पलट दिए थे अपने पिता के फैसले

बेंगलुरु
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बीते कुछ वक्त में काफी चर्चित रहे हैं। खासतौर पर अपने पिता के दो फैसलों को बदलने के लिए वह सुर्खियों में रहे हैं। इसको लेकर पहली बार जस्टिस चंद्रचूड़ ने प्रतिक्रिया दी है। बेंगलुरु में एक कार्यक्रम से इतर एक न्यूज चैनल से बात करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहाकि जजमेंट-जजमेंट होता है। इसको लागू करते हुए आपको बतौर जज अपने दिमाग का इस्तेमाल करना होता है। वह यहां पर 19वें चीफ जस्टिस ईएस वेंकरमैया की याद में आयोजित लेक्चर में हिस्सा लेने पहुंचे थे।

पता था फैसला पलट रहा हूं
गौरतलब है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता वाईवी चंद्रचूड़ के दौ फैसलों को पलटा है। इसमें पहला केस एडीएम जबलपुर का है। दूसरा मामला एडल्ट्री से जुड़ा था, जिसमें जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने पिता से इतर फैसला दिया था। इन फैसलों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ से सवाल पूछा था। इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। उन्होंने कहाकि बतौर जज हमारी ट्रेनिंग ही इसी तरह की होती है। उन्होंने कहाकि मुझको भी मालूम था कि मैं अपने पिता के फैसले को पलट रहा हूं। एक निर्णय, निर्णय होता है। एक जज के रूप में आपको अपने दिमाग और तर्कशक्ति का इस्तेमाल करना होता है।

क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाईई चंद्रचूड़ भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। 28 अप्रैल 1976 को जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, पांच जजों की संविधान पीठ का हिस्सा थे। इस पीठ ने 4:1 के बहुमत से कहा था कि इमरजेंसी के दौरान सभी मौलिक अधिकार निलंबित हो जाते हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि नागरिक अपनी सुरक्षा के संवैधानिक अधिकार के लिए अदालत का रुख नहीं कर सकते हैं। तकरीबन 41 साल बाद मामला रिव्यू के लिए सुप्रीम कोर्ट में आया था। तब जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पिता के उस फैसले को पलट दिया था। कुछ ऐसा ही उन्होंने एडल्ट्री से जुड़े केस में किया। 1985 में सीजेआई रहे उनके पिता ने धारा 497 को बरकरार रखा था। लेकिन बाद में रिव्यू के दौरान डीवाई चंद्रचूड़ इसे पलटते हुए कहाकि फैसलों को वर्तमान समय के हिसाब से प्रासंगिक बनाना चाहिए।

 

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