गोरखा भारतीय सेना का बीता हुआ दौर बने ! रेजीमेंट में नहीं एक भी नेपाली सैनिक, जानें क्या है वजह
काठमांडू
पाकिस्तान के छक्के छुड़ाने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ हों या फिर चीन-पाकिस्तान को हर बार आगाह करने वाले जनरल बिपिन रावत हो, इन दोनों में एक ही बात समान थी। दोनों गोरखा रेजीमेंट से आते थे और गोरखा सैनिकों के गौरवशाली इतिहास का प्रतिनिधित्व करते थे। अब जो हालात हैं उन्हें देखकर लगता है कि भारतीय सेना में गोरखा सैनिक इतिहास बनकर रह जाएंगे। कई दशकों तक नेपाली गोरखा सैनिक भारतीय सेना की ताकत बनकर रहे और अपने देश नेपाल की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करने का काम किया है। लेकिन फिलहाल नेपाल के गोरखा सैनिकों की भर्ती रुकी हुई है और ऐसे में उनके भविष्य पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं।
अग्निवीर स्कीम से हुआ नुकसान
भारत ने साल 2022 में अग्निवीर (अग्निपथ) स्कीम योजना को लागू किया था। इसके बाद से ही हालात बदल गए हैं। ऐसा नहीं है कि भारतीय सेना में गोरखा की भर्ती पूरी तरह से बंद हो गई है। लेकिन फिलहाल यह भर्ती प्रक्रिया रुकी हुई है। अफसोस की बात है कि गोरखा रेजीमेंट से नेपाली गोरखा गायब हैं। इसके साथ ही भारतीय सेना में सैनिकों की भर्ती की परंपरा भी टूट गई है। सन् 1947 में हुए एक त्रिपक्षीय समझौते के बाद नेपाली गोरखा सैनिक यूके, भारत और नेपाल की सेनाओं का हिस्सा बने थे। इस समझौते के बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सेवा देने वाले गोरखा सैनिकों की स्थिति में बदलाव हुआ। साथ ही गोरखा सैनिकों को ब्रिटेन के साथ भारत की सेनाओं में भी सेवा देने का मौका मिला।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
समझौते के बाद गोरखा की 11 मौजूदा रेजीमेंटों में से सात भारतीय सेना का हिस्सा बन गई थीं। जबकि बाकी बची चार रेजीमेंट्स ब्रिटिश सेना का हिस्सा बन गईं। इस समझौते की सबसे बड़ी खामी यह भी रही कि यह समझौता कानूनी बाध्यताओं से परे हैं। इसके तहत कोई ऐसा तंत्र नहीं है जो भारतीय सेना में गोरखा सैनिकों की भर्ती को नियमित कर सके। विशेषज्ञों के मुताबिक अग्निवीर स्कीम की वजह से लंबे समय से नेपाली गोरखाओं के भारतीय सेना में होने वाली भर्ती में खासा व्यवधान डाला है। स्कीम के लॉन्च होन के बाद से इस तरह की कई ऐसी बहस हो रही हैं जो संप्रभुता और दूसरे देशों के नागरिकों की भारतीय सेना पर पड़ने वाले प्रभावों से जुड़े हुए हैं।
बंद हुई गोरखा सैनिकों की भर्ती
स्कीम के विरोधियों का कहना है कि नेपाल एक संप्रभु देश है। ऐसे में उसे अपने नागरिकों को दूसरे देशों में उनके दुश्मनों के खिलाफ तैनाती के लिए नहीं भेजना चाहिए। हालांकि कई और देशों की सेनाओं में नेपाली युवाओं की तैनाती में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अग्निवीर भर्ती प्रक्रिया से उन कई सैनिकों के भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं जो अलग-अलग युद्ध क्षेत्र जैसे रूस यूक्रेन में तैनात हैं। भारतीय सेना में भी पिछले करीब 200 साल से गोरखा सैनिक अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। अग्निवीर स्कीम से नाराज नेपाल ने फिलहाल गोरखा सैनिकों की भर्ती को रोक दिया है। पिछले साल से भर्ती प्रक्रिया को स्पष्टता नहीं होने तक के लिए रोक दिया गया है।