दलबदलू घर के रहे न घाट के
भोपाल
मध्य प्रदेश के इस चुनाव में कुछ नेताओं के स्थिति में बुंदेलखंडी कहावत फिट ना बैठ जाए ‘दोउ दीन से गए पांडे ना हलुआ मिला ना मांडे’ सटीक बैठ रही है। कुछ नेता भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए कुछ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए, कुछ अन्य दल छोड़कर भाजपा या कांग्रेस में गए। उम्मीद थी कि टिकट मिल जाएगा, लेकिन हालात ने साथ नहीं दिया और अब जिस दल में गए उन्होंने टिकट नहीं दिया। अब अपनी राजनीति जमीन बनाए रखने के लिए इन्हें अपने आप में ही संघर्ष करना पड़ रहा है।
बीरेंद्र रघुवंशी: कोलारस मिला न शिवपुरी
कोलारस से विधायक बीरेंद्र रघुवंशी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए। उन्होंने इस उम्मीद से कांग्रेस की सदस्यता ली थी कि वे शिवपुरी से चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया और इस सीट से अपने सीनियर विधायक केपी सिंह कक्काजू को टिकट दे दिया। कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने उनको टिकट नहीं देने पर अफसोस जरूर जताया लेकिन बीरेंद्र बेटिकट ही रहे।
अवधेश नायक: छिन गया मुंह का निवाला
भाजपा से राज्य मंत्री का दर्जा मिलने के बाद भी पार्टी छोड़कर टिकट की आस में कांग्रेस में गए अवधेश नायक से मुंह में आया निवाला भी छिन गया। कांग्रेस ने उनको दतिया से प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के सामने उतारा था, लेकिन उनकी इतनी खिलाफत हुई कि उनका टिकट काटकर राजेंद्र भारती को टिकट दे दिया गया। अब अवधेश नायक कांग्रेस के एक सिपाही बनकर रह गए हैं और चुनाव लड़ने की तमन्ना अधूरी रह गई।
नारायण त्रिपाठी: खुद पार्टी बनाकर उतरे मैदान में
मैहर से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने आचार संहिता लगने के बाद भाजपा की सदस्यता और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। उन्हें उम्मीद थी कि कांग्रेस उन्हें शामिल कर लेगी, लेकिन कांग्रेस में उनकी बात नहीं बनी और पार्टी ने यहां से दूसरे उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया। अब त्रिपाठी अपनी खुद की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। त्रिपाठी ने ‘विंध्य जनता पार्टी’ के नाम से राजनीतिक दल बनाया है।
संजीव कुशवाह: करना पड़ी घर वापसी
भिंड से बसपा से पिछला चुनाव जीते संजीव कुशवाह ने भाजपा ज्वाइन कर ली पर गुरुवार को इस्तीफा भी दे दिया। भाजपा ने अपनी चार लिस्ट में भिंड को छोड़कर रखा था, लेकिन पांचवीं लिस्ट में यहां से नरेंद्र सिंह कुशवाह को टिकट दे दिया। नरेंद्र सिंह कुशवाह को टिकट मिलते ही संजीव कुशवाह के अरमानों पर पानी फिर गया। अब वे भी अपनी राजनीति जमीन मजबूत रखने के लिए बीएसपी की शरण में गए और चुनाव मैदान में उतरे हैं।
निशा की नहीं हो सकी राजनीतिक सुबह
राज्य प्रशासनिक सेवा की अफसर निशा बांगरे ने चुनाव लड़ने की ही चाह में अपने नौकरी से इस्तीफा दिया। कांग्रेस ने उनका इस्तीफा मंजूर होने का इंतजार किया, लेकिन इंतजार लंबा होता जा रहा था। अपना इस्तीफा स्वीकार करवाने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट तक गई। कांग्रेस ने आमला सीट से निशा बांगरे की जगह पर मनोज मालवे को उम्मीदवार बना दिया। अब बांगरे ने कांग्रेस की सदस्यता तो ले ली, लेकिन कमलनाथ ने यह कहकर उनके चुनाव लड़ने की इच्छा पर पानी फेर दिया कि उनकी जरूरत आमला की जगह पूरे प्रदेश को है। निशा बांगरे को अभी भी उम्मीद है कि कोई चमत्कार हो जाएगा।
यादवेंद्र व ममता ने भी बदला पाला
इसी तरह, कांग्रेस पार्टी से पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह को बसपा ने सतना के नागौद से प्रत्याशी बनाया हैं। भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा को आम आदमी पार्टी ने चाचौड़ा से अपना उम्मीदवार बनाया है।
दल बदलने वाले ये नेता रहे फायदे में
ऐसा नहीं है कि दल बदल कर भाजपा या कांग्रेस में आए सभी नेताओं के साथ ऐसा हुआ हो। भाजपा से कांग्रेस में आए भंवर सिंह शेखावत को बदनावर से, खातेगांव से दीपक जोशी , सेमरिया से अभय मिश्रा, होशंगाबाद से गिरिजा शंकर शर्मा, महू से रामकिशोर शुक्ला, जावद से समंदर पटेल, भिंड से चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, बालाघाट से अनुभा मुंजारे, कटंगी से बौद्ध सिंह भगत को टिकट दिया है। वहीं भाजपा ने बड़वाह से सचिन बिरला, मैहर से श्रीकांत चतुर्वेदी, वारासिवनी से प्रदीप जायसवाल, बिजावर राजेश शुक्ला को टिकट दिया है।