मोदी सरकार ने रूस को दिया झटका, मांग रहे थे क्रूड ऑयल के लिए चीनी मुद्रा में पेमेंट
नई दिल्ली
पिछले कुछ समय से चीन और रूस लगातार करीब आ रहे हैं। पिछले महीने जी20 समिट के लिए रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भारत का दौरा नहीं किया, लेकिन इसके बाद भी वह चीन पहुंचे, जिसपर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गईं। रूस और चीन की दोस्ती धीरे-धीरे मजबूत हो रही है, जो न सिर्फ पश्चिमी देशों के लिए, बल्कि भारत के लिए भी चिंता का सबब है। इस बीच, भारत को क्रूड ऑयल बेच रहा रूस चीनी मुद्रा में पेमेंट की मांग कर रहा है। हालांकि, मोदी सरकार ने कच्चे तेल के इम्पोर्ट के लिए चीनी मुद्रा में भुगतान करने के रूसी तेल सप्लायर्स के दबाव को खारिज करके झटका दे दिया। इसके पीछे बीजिंग और नई दिल्ली के बीच लंबे समय से जारी तनाव वजह है।
बातचीत में सीधे शामिल एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी और सरकार के स्वामित्व वाली तेल रिफाइनरी के एक अन्य वरिष्ठ व्यक्ति के अनुसार, कुछ रूसी तेल सप्लायर्स युआन में भुगतान की मांग कर रहे हैं। दोनों लोगों ने पहचान उजागर न करने को कहा क्योंकि चर्चाएं निजी हैं। इन दो लोगों और दो अन्य भारतीय सरकारी अधिकारियों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार उन अनुरोधों पर सहमत नहीं होगी। भारत की लगभग 70 फीसदी रिफाइनरी सरकारी स्वामित्व वाले हैं, जिसका मतलब है कि उन्हें वित्त मंत्रालय के निर्देशों का पालन करना होगा।
सरकार ने युआन में भुगतान पर लगाई रोक
सबसे बड़ी सरकारी रिफाइनरी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने पिछले दिनों रूसी कच्चे तेल के लिए युआन का भुगतान किया था। हालांकि, सरकार ने तब से उस पर रोक लगा दी है। निजी रिफाइनरी युआन में भुगतान का निपटान कर सकते हैं। रूस के पास रुपये की अतिरिक्त सप्लाई है, जिसका इस्तेमाल करने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले वर्ष में युआन की मांग तेजी से बढ़ी है और अर्थव्यवस्था इम्पोर्ट के लिए चीन पर अधिक निर्भर हो गई है।
ज्यादातर व्यापार युआन में ही कर रहा रूस
रूसी बिजनेसमैन अपना ज्यादातर व्यापार युआन में ही कर रहे हैं। इस वर्ष चीनी मुद्रा डॉलर की जगह रूस में सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्रा भी बन गई है। यदि तेल की कीमतें अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा रूसी तेल पर लगाई गई 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा से ऊपर हैं, तो भारतीय रिफाइनरी ज्यादातर रूसी तेल इम्पोर्ट के लिए दिरहम – संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा – अमेरिकी डॉलर और थोड़ी मात्रा में रुपये का भुगतान करती हैं, जबकि युआन का इस्तेमाल कभी-कभी छोटे लेनदेन में ही किया जाता है। बता दें कि रूस अब भारत के लिए कच्चे तेल का शीर्ष सप्लायर है, जो दक्षिण एशियाई देशों की खरीद का लगभग आधा हिस्सा बनाता है।