भारतीय मूल के प्रधानमंत्री को UK उप-चुनाव में ऋषि सुनक की पार्टी की करारी हार
ब्रिटिश
ब्रिटिश प्रधान मंत्री ऋषि सुनक की सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी को शुक्रवार को पहले से सुरक्षित दो संसदीय सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा है, जिससे उनकी पार्टी की अगले साल होने वाले आम चुनाव जीतने की क्षमता पर संदेह पैदा हो गया है। दोहरी हार ने कंजर्वेटिव पार्टी के समर्थन में नाटकीय गिरावट दिखाई है, जिन्होंने पिछले चार राष्ट्रीय चुनाव जीते हैं, और यह केवल तीसरी बार है, कि 1991 के बाद से कोई ब्रिटिश प्रधान मंत्री एक ही दिन में दो उप-चुनाव हार गया है। जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं, कि क्या भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, करिश्मा दिखाने में नाकाम साबित हो रहे हैं?
ऋषि सुनक की पार्टी की करारी हार
ब्रिटेन की मुख्य विपक्षी लेबर पार्टी ने लंदन के उत्तर में मिड-बेडफोर्डशायर की सीट जीत ली है और ये जीत का आंकड़ा 25 हजार से ज्यादा मतों का रहा, जिससे यह 1945 के बाद से उप-चुनाव में पार्टी की सबसे बड़ी हार बन गई है। इसके अलावा, लेबर पार्टी ने एक अन्य पूर्व कंजर्वेटिव गढ़, टैमवर्थ, जो कि मध्य इंग्लैंड का एक बड़ा ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है, उसमें भी भारी बहुमत से जीत हासिलकी है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दोनों पार्टियों के बीच दूसरा सबसे बड़ा वोट स्विंग है। लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर ने एक बयान में कहा, कि "ये अभूतपूर्व परिणाम हैं।" उन्होंने आगे कहा, कि "इन टोरी गढ़ों में जीत से पता चलता है, कि लोग भारी बदलाव चाहते हैं और वे इसे पूरा करने के लिए हमारी बदली हुई लेबर पार्टी में अपना विश्वास रखने के लिए तैयार हैं।"
आपको बता दें, कि 43 साल के ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने खुद को एक साहसी आर्थिक सुधारक के रूप में पेश करने की कोशिश की है और माना जा रहा है, कि घोटालों और आर्थिक उथल-पुथल के बाद दो मंत्रियों को पद से हटाकर उन्होंने कुछ हद तक विश्वसनीयता बहाल की है, अन्यता ये हार और भी ज्यादा मतों से हो सकती थी। बढ़ती महंगाई और देश के मेडिकल सिस्टम में लंबी लंबी वेटिंग लिस्ट ने लोगों को काफी नाराज कर रखा है, लिहाजा ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी के खिलाफ लोगों का गुस्सा काफी ज्यादा बढ़ा हुआ है। वहीं, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के पास लोगों की नाराजगी को दूर करने के लिए बेहद सीमित विकल्प बचे हैं, क्योंकि उनके पास आर्थिक सुधारों के लिए अब समय नहीं बचा है।
अगले साल चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा कुछ कड़े फैसले भी लेने की संभावना नहीं के बराबर है। वहीं, पार्टी के अंदर भी कलह शांत होने का नाम नहीं ले रहा है, जिससे ऋषि सुनक के आगे की राह काफी मुश्किल दिख रही है। कंजरवेटिव के एक प्रवक्ता ने कहा, कि नतीजे कठिन रहे हैं लेकिन सरकारें आम तौर पर मध्यावधि चुनाव जीतने के लिए संघर्ष करती हैं। इस महीने अपनी पार्टी के सम्मेलन में एक भाषण में, ऋषि सुनक ने खुद को एक साहसी सुधारक के रूप में पेश करने की कोशिश की, जो अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कठोर निर्णय लेने को तैयार है। सुनक ने एक हाई-स्पीड रेलवे लाइन को खत्म करने की योजना की घोषणा की, जिसका उनके पूर्ववर्तियों ने समर्थन किया था और पहले देश की नेट-शून्य प्रतिबद्धताओं को कम करने की योजना की घोषणा की थी। लेकिन, सम्मेलन के बाद, सर्वेक्षणों से पता चला, कि सुनक लेबर के साथ घाटे को कम करने में नाकाम रहे हैं, हालांकि उनकी व्यक्तिगत रेटिंग में मामूली सुधार हुआ है।