धार्मिक

भूलकर भी पिंडदान में ना करें इन फूलों का इस्तेमाल, इस खास पुष्प से है तर्पण का महत्व

 हर साल पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रमाह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है. इस साल29 सितम्बर से इसकी शुरुआत हो गई  है. पितृ पक्ष पूरे 15 दिनों तक चलने वाला है. इसका समापन अश्विन माह के अमावस्या को होगा. मान्यता है कि यह 15 दिन पितृ का होता है. पितृ की आत्मा की शान्ति के लिये श्रद्धापूर्वक श्राद्ध, तर्पण,पिंडदान आदि किया जाता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशज को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं.

पितृ पक्ष में पितरों की पूजा करते समय फूल भी अर्पण किया जाता है. लेकिन पितृ पक्ष में सभी फूलों का मान्य नहीं होता. आइये देवघर के ज्योतिषाचार्य से जानते हैं कि पितृपक्षमें पितरों को कौन सा फूल अर्पण करना चाहिए.

 इस साल पितृपक्ष 29  सितम्बर से 15 अक्टूबर तक चलने वाला है. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का महत्व ज्यादा है. पितृ पक्ष का दिन ऐसा होता है जहां पूर्वज सूक्ष्म रूप से धरती पर आते हैं. जहां उनका पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध आदि कर मोक्ष से मुक्ति की जाती है. इसके बाद बैकुंठ वास करते हैं. लेकिन पितृपक्ष में एक बात का ख्याल रखा जाता है कि इन दिनों में विशेष फूल ही अर्पण किया जाता है और वह फूल होता है काश का फूल.

पितृपक्ष में करे इस फुल का उपयोग :
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि पितृ पक्ष के दिनों में सफेद फूलों का ही इस्तेमाल किया जाता है. विशेष कर काश का फूल. बता दें कि पितृपक्ष के दिनों में हर फूल को श्राद्ध में शामिल नहीं किया जाता. काश के फूल के साथ-साथ ही श्राद्ध पूजन में मालती, जूही, चंपा आदि सफेद फूलों का भी इस्तेमाल किया जाता है. बिना काश के फूलों का श्राद्ध पूजन अशुभ माना जाता है.

इन फूलों का भूलकर भी ना करे प्रयोग :
पितृ पक्ष के दिनों में श्राद्ध पूजन में सभी तरह के फूलों का उपयोग अशुभ माना जाता है. इसीलिए पितृपक्ष श्राद्ध और तर्पण के दौरान बेलपत्र, कदम, करवीर, केवड़ा मौलसीरी,और लाल रंग के फूलों का उपयोग बिलकुल वर्जित रहता है. इससे पितृ नाराज हो जाते हैं. पितरों के नाराज होने से वंश पर नकरात्मक असर पड़ता है. इसलिए पितृपक्ष के दिनों में इन सब फूलों का उपयोग करने से बचें.

पिंडदान के लिए यह समय सबसे उत्तम
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि पिंडदान देने के लिए सबसे उत्तम जगह बिहार का गया जिला होता है. मातृपक्ष और पितृपक्ष का तीन पीढियां तक पिंडदान पड़ता है. वहीं कोई भी पिंडदान देने के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर का माना जाता है. जिसे कुतुप बेला कहते हैं. ना ही अहले सुबह और ना ही ढलती शाम में पिंडदान किया जाना चाहिए. इससे अशुभ प्रभाव पड़ता है. पितृ पक्ष में पिंडदान 11:30 बजे से लेकर 2:30 तक का समय सबसे उत्तम माना गया हैं.

Pradesh 24 News
       
   

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button