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गोधरा कांड के 8 आरोपियों को SC से जमानत, ट्रेन में जिंदा जला दिए थे 58

नई दिल्ली

2002 में गुजरात के गोधरा में ट्रेन की बोगी में आग लगाने के 8 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है।हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने 4 दोषियों की जमानत याचिका को उनकी भूमिका को देखते हुए खारिज कर दिया।चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यह फैसला दिया। इन 8 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और ट्रायल कोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा था। इस जघन्य कांड में अयोध्या से आ रहे 58 तीर्थ यात्रियों को जिंदा जलाकर मार डाला गया था। घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। दिया।

यह 28 फरवरी साल 2002 की बात है। गुजरात के अहमदाबाद के नरोदा गांव में भीषण दंगा हुआ। पूरा गांव आग की चपेट में आ गया। गलियों में लाशें पड़ी हुईं थीं। इस घटना में अल्पसंख्यक समुदाय के 11 लोगों की हत्या कर दी गई। नरोदा नरसंहार केस में गुरुवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया। इस केस में कुल 86 लोगों को आरोपी बनाया गया था। जज एसके बक्शी ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। बरी हुए आरोपियों में सबसे ज्यादा चर्चा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व विधायक माया कोडनानी की हो रही है। इस केस में माया कोडनानी मुख्य आरोपी थीं। अब बरी होने के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या माया कोडनानी फिर से राजनीति में एंट्री करने वाली हैं?

कौन हैं माया कोडनानी?
माया कोडनानी गुजरात भाजपा की एक कद्दावर नेता थीं। माया ने साल 1990 में बतौर भाजपा कार्यकर्ता राजनीति में एंट्री ली थी। माया इससे पहले एक गाइनकॉलजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर) थीं। पढ़ी-लिखी होने के नाते और अच्छा भाषण देने की वजह से माया को गुजरात में एक होनहार नेता माना जाता था। माया की काबिलियत देख पार्टी ने उन्हें भाजपा महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद साल 1995 में माया अहमदाबाद नगर निगम से चुनाव जीतीं। और साल 1998 में माया नरोदा विधानसभा सीट से चुनाव जीत पहली बार विधायक बनीं।

साल 2009 में देना पड़ा इस्तीफा
माया कोडनानी की राजनीतिक लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। साल 1998 में विधायक बनने के बाद माया 2002 के चुनाव में दोबारा विधायक बनीं। साल 2007 में जब माया तीसरी बार चुनाव जीतकर विधायक बनीं तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया। हालांकि कैबिनेट मंत्री बनने के बाद माया को साल 2009 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। दरअसल, उन्हें 2009 में नरोदा नरसंहार केस में अरेस्ट कर लिया गया था।

दोनों केस में बरी
दरअसल, जब यह नरसंहार हुआ था तब माया नरोदा से विधायक थीं। माया पर यह आरोप लगा कि उन्होंने भीड़ को उकसाया जिससे 11 मुसलमानों को जिंदा जला दिया गया। इस केस में साल 2009 में एसआईटी ने एक चार्जशीट फाइल की। माया कोडनानी का बचाव करने साल 2017 में भाजपा नेता अमित शाह कोर्ट में पेश हुए थे। इस केस में गुरुवार को कोर्ट ने माया को बरी कर दिया। बता दें कि गुजरात के एक और केस में माया कोडनानी को आरोपी बनाया गया था। उस केस में माया को कोर्ट ने साल 2018 में बरी कर दिया था। यानी माया अब दोनों केस में बरी हो चुकी हैं। हालांकि इस दौरान माया कोडनानी भाजपा के कई नेताओं के लिए प्रचार करती देखी गई हैं लेकिन अब यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि क्या अब वह सक्रीय राजनीति में वापसी करेंगी?

भाजपा का जवाब
बरी होने के बाद 67 साल की माया कोडनानी ने कहा कि उनका न्याय तंत्र पर विश्वास बढ़ गया है। साल 2009 के बाद माया की राजनीति से दूरी बढ़ती गई। इंडियन एक्सप्रेस से भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बातचीत में बताया कि उन्हें नहीं लगता कि माया कोडनानी अब चुनाव लड़ेंगी। भाजपा नेता ने कहा, 'माया कोडनानी पार्टी में काफी लोकप्रिय हैं। कार्यकर्ता उनका सम्मान करते हैं। कोर्ट ने उन्हें दोनों केस में बरी किया है। ऐसे में अगर वो चुनाव लड़ना चाहती हैं तो क्यों नहीं।' हालांकि भाजपा नेता ने यह संकेत देते हुए कहा कि अगर माया कोडनानी चुनाव लड़ना चाहेंगी तो इसमें कोई समस्या नहीं होगी। ऐसे में यह अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या माया दोनों केस में बरी होने के बाद राजनीति में वापसी करेंगी?

क्या है नरोदा गाम मामला?
साल 2002 में गोधरा में एक चलती ट्रेन में आग लगा दी गई थी। इस हादसे में 58 लोगों की जिंदा जलने से मौत हो गई थी। इस हादसे के अगले दिन गुजरात के नरोदा गांव में हिंसा फैल गई। नरोदा गांव में भीषण दंगा हुआ। लोगों के घर आग के हवाले कर दिए गए। इस हादसे में कुल 11 लोगों की मौत हो गई थी। इस केस में कुल 86 लोगों को आरोपी बनाया गया था। कोर्ट ने गुरुवार को सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

 

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