उमर अब्दुल्ला NDA में संभावना तलाश रहे हैं? 4 कारण जो कर रहे इशारा
श्रीनगर
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शाम को श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात कर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां)-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनाने का दावा पेश किया। अब्दुल्ला ने सिन्हा के साथ अपनी मुलाकात के दौरान गठबंधन सहयोगियों की ओर से समर्थन पत्र प्रस्तुत किया।
अब्दुल्ला ने राजभवन से लौटने के बाद अपने आवास पर संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने उपराज्यपाल से नई सरकार के शपथ ग्रहण की तारीख जल्द से जल्द तय करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, “मैंने उपराज्यपाल से मुलाकात कर नेकां, कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, ‘आप’ और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन पत्र प्रस्तुत किए। सभी ने नेकां का समर्थन किया है। मैंने उनसे (राज्यपाल) जल्द से जल्द एक तारीख तय करने का अनुरोध किया ताकि शपथ समारोह हो सके और लोगों द्वारा चुनी गई सरकार काम करना शुरू कर सके।” उन्होंने कहा कि शपथ समारोह बुधवार को होने की संभावना है।
जो लोग जम्मू कश्मीर की राजनीति को बहुत नजदीक से जानते हैं उन्हें लगता है कि केंद्र की बीजेपी सरकार और अब्दुल्ला परिवार एक दूसरे के नजदीक आ रहे हैं. दरअसल जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने जा रही नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इन दिनों कई ऐसी बातें की हैं जो उपरोक्त बात की तस्दीक कर रही हैं. कश्मीर के सीएम बनने जा रहे उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को कहा कि उन्हें 4 निर्दलीयों का सपोर्ट मिल गया है और कांग्रेस से भी सपोर्ट की बातचीत चल रही है. इस एक लाइन ने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों के कान ख़ड़ें कर दिए हैं. उन्हें लगता है कि कहीं उमर अब्दुल्ला के मन में कुछ और तो नहीं चल रहा है. क्योंकि इधर कम से 3 बार उमर ने ऐसी बातें कहीं हैं जिससे लोगों को लगा कि उन्हें अब कांग्रेस की खास जरूरत नहीं है. बल्कि वे बीजेपी के नजदीक जाने को आतुर दिख रहे हैं.
बावजूद इसके कि उमर ने कई बार यह भी दोहराया है कि मैं किसी भी कीमत पर बीजेपी के साथ नहीं जा सकता हूं. पर बीजेपी समर्थकों के बीच इस बात की चर्चा खूब है कि नेशनल कांफ्रेंस पीडीपी से तो बेहतर ही है. बीजेपी जब पीडीपी चीफ महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बना सकती है तो नेशनल कॉन्फ्रेंस तो उससे बेहतर ही है. मुफ्ती तो कश्मीर को भारत से अलग करने की बात तक करती रही हैं जबकि नेशनल कांफ्रेंस तो काफी उदारवादी है. फारूक अब्दुल्ला सीना ठोककर कहते हैं कि वे भारतीय हैं. यही नहीं उनके राम भजन भी बहुत लोकप्रिय हैं. आइये देखते हैं कि सोशल मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों में एनसी और बीजेपी के पास आने की क्यों चर्चा हो रही है?
1-क्या कांग्रेस से छुटकारा पाना चाहते हैं उमर?
पिछले कुछ दिनों में उमर अब्दुल्ला के उन बयानों पर गौर करें जो इस तरह की कयासबाजी को जन्म दे रही हैं. उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को जब कहा कि उन्हें 4 निर्दलीयों का सपोर्ट मिल गया है और कांग्रेस से भी सपोर्ट की बातचीत चल रही है.तो लोगों को खटका कि आखिर कांग्रेस से सपोर्ट की बातचीत क्यों चल रही है? कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. इसमें सपोर्ट के लिए बातचीत जैसी बात कहां से आ गईं. यही नहीं इसके पहले भी उमर ने जैसी बातें की उससे यही लगता है कि उमर बीजेपी के नजदीक आना चाहते हैं. कुछ बानगी देखिए-
-हमें केंद्र के साथ समन्वय बनाकर चलने की जरूरत है. जम्मू-कश्मीर के कई मुद्दों का समाधान केंद्र से लड़ाई करके नहीं हो सकता. चुनाव परिणाम आने के बाद अब्दुल्ला ने यह टिप्पणी की थी.
-मैं यह सुनिश्चित करने का हर प्रयास करूंगा कि आने वाली सरकार एलजी और केंद्र सरकार के साथ अच्छे संबंधों के लिए काम करे. नई सरकार की प्राथमिकता जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करना है, जिसके लिए वह दिल्ली में सरकार के साथ काम करेगी.
-उमर अब्दुल्ला ने इंडिया टुडे को बताया था कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के बिना भी अच्छा प्रदर्शन किया होता. कांग्रेस के साथ गठबंधन हमारे लिए सीटों के बारे में नहीं था. हम बिना कांग्रेस के भी ये सीटें जीत सकते थे, सिवाय शायद एक के.
-मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री एक सम्माननीय व्यक्ति हैं, उन्होंने यहां चुनाव प्रचार करते समय राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया है. सम्माननीय गृह मंत्री ने भी यही कहा था.
2-नेशनल कॉन्फ्रेंस की क्या मजबूरी है केंद्र से मधुर रिश्ता
नेशनल कांफ्रेंस जानती है कि दिल्ली की तरह ज्यादातर सत्ता उपराज्यपाल के हाथ में रहने वाली है. हर चीज के लिए उन्हें एलजी के पास जाना होगा.मौजूदा हालात में नई राज्य सरकार काफी हद तक पावरलेस ही होगी. कानून व्यवस्था, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस समेत तमाम मामलों के लिए एलजी का फैसला आखिरी होगा. इससे टकराव की नौबत आने से बेहतर है कि आपसी रजामंदी से काम किया जाए. इससे भविष्य में बीजेपी के साथ आने का रास्ता भी खुला रहेगा.अगर साथ आते हैं तो केंद्र सरकार में भी नेशनल कांफ्रेंस को एक दो मंत्रालय संभालने का मौका मिल सकता है. कश्मीर के डिवलपमेंट के लिए काफी पैसों की जरूरत है.यह बजट भी मौजूदा केंद्र सरकार के रहमोकरम पर ही निर्भर होगा.
दूसरी बात यह भी है कि एनसी के पास 42 सीटें हैं, लेकिन एनसी-कांग्रेस गठबंधन, 48 सीटों के साथ, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 45 सीटों के आधे-अधूरे अंक से बस थोड़ा ऊपर है. अब उनके साथ 4 निर्दली भी हैं. फिर भी 90 विधायकों और 5 नियुक्त विधायकों को भी जोड़ लिया जाए तो बहुमत का आंकड़ा 48 तक पहुंच जाता है. इसलिए उमर सरकार कभी भी बहुत सेफ नहीं रहेगी. उसे अपनी मर्जी की करने के लिए बीजेपी के सहयोग की हमेशा जरूरत बनी रहेगी.
3-नेशनल कॉन्फ्रेंस का मधुर रिश्ता रहा एनडीए से
फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.यही कारण है कि जब उन्होंने मोदी सरकार की तारीफ की तो लोगों में संदेह बढ़ गया कि क्या वो बीजेपी की ओर जा सकते हैं? नेशनल कांफ्रेंस एक ऐसी पार्टी रही है, जिसका कांग्रेस और बीजेपी दोनों से रिश्ता रहा है.कांग्रेस के समर्थन से फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर में सरकार भी चलाई. अभी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एससीओ समिट के लिए पाकिस्तान जाने का ऐलान किया, तो फारूक अब्दुला ने इसकी जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा, यह एक अच्छा कदम है. हमें उम्मीद है कि इससे दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे. दोनों देश दोस्ती के बारे में सोचेंगे. फारुक ने कहा कि मैं जयशंकर को याद दिलाना चाहूंगा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी कहा करते थे कि ‘दोस्त बदले जा सकते हैं मगर पड़ोसी नहीं…’. विधानसभा चुनावों ही नहीं लोकसभा चुनावों के पहले भी कई बार ऐसा लगा कि एनडीए में एक बार फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस शामिल हो सकती है.
4-अनुच्छेद 370 का मुद्दा शायद कोई बाधा नहीं बनेगा
भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र सिंह राणा ने इंडिया टुडे टीवी को बताया कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद भी भाजपा के साथ एनसी ने सरकार बनाने की कोशिश की थी. राणा, जो उमर अब्दुल्ला के पूर्व राजनीतिक सलाहकार थे, तीन साल पहले भाजपा में शामिल हुए थे. वो कहते हैं कि यहां तक कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भाजपा से गठबंधन बनाने की कोशिश की, लेकिन भाजपा के नेतृत्व ने एनसी नेताओं के सभी प्रस्तावों को खारिज कर दिया.यदि भाजपा और एनसी एक साथ आने का निर्णय लेते हैं, तो अनुच्छेद 370 का मुद्दा शायद कोई बाधा नहीं बनेगा.