1984 दंगाः सबसे पहले राष्ट्रपति पर हुआ था हमला, फिर दिल्ली में चार दिन हुआ कत्लेआम; नरसंहार की कहानी
नई दिल्ली
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगे को भले ही 39 साल गुजर गए हों पर दिल्ली की सड़कों पर उस कत्लेआम के गवाह बने लोगों के जेहन से इसे कभी निकाला नहीं जा सकता। वहीं अब 39 साल बाद सीबीआई ने शनिवार को इस मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ चार्जशीट फाइलकी है। एजेंसी का आरोप है कि टाइटलर ने लोगों को कत्लेआम के लिए उकसाया था और कहा था, पहले सिखों की हत्या करो और फिर उनकी दुकानें लूटो। एजेंसी ने चार्जशीट में कहा कि दिल्ली के गुरुद्वारा पुल बंगश के पास भीड़ ने उकसावे के बात तीन सिखों की हत्या कर दी थी। जगदीश टाइटलर यह भी कह रहे थे कि पूर्वी दिल्ली के मुकाबले यहां कम सिख मारे गए हैं।
31 अक्टूबर की रात, जब घरों से निकालकर जिंदा जला दिए गए सिख
आजादी के बाद भारत ने ऐसे दंगे कभी नहीं देखे थे। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। उन्हें एम्स ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। आंकड़ों की मानें तो दिल्ली में कम से कम 3 हजार लोगों की हत्या की गई। वहीं इस दंगे के गवाह रहे वरिष्ठ वकील एचएस फुलका का कहना है कि आज तक यही नहीं पता चला कि दिल्ली में कितने सिखों को मारा गया।
सबसे पहले राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह पर हुआ था हमला
इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो तत्कालीनी राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह विदेश दौरे से लौट रहे थे। वह एयरपोर्ट से सीधा एम्स के लिए रवाना हुए। हालांकि रास्ते में ही उनके काफिले पर हमला कर दिया गया। वह बाल-बाल बच गए। इसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे शुरू हो गए। बताया जाता है कि त्रिलोकपुरी इलाके से दंगे की आग भड़की। इसके बाद दिल्ली के सागरपुर, उत्तमनगर, तिलक नगर, जहांगीर पुरी, पंजाबी बाग, मंगोलपुरी, सुल्तानपुरी, कल्याणपुरी, अजमेरी गेट में सिखों को मारा जाने लगा।
इन इलाकों में सबसे ज्यादा दंगाइयों ने कहर बरपाया। घरों से घसीटकर सिखों को मारा गया। जिंदा जला दिया गया। जो लोग घर से बाहर नहीं निकले उनके घर को ही जला दिया गया। दंगाइयों के लिए सिखों को पहचानना आसान है। टीवी रिपोर्ट के मुताबिक एक पीड़ित लक्ष्मी कौर ने बताया कि उनके बेटे और पति छत पर जा बैठे थे लेकिन उनके घर को आग लगा दी गई और वे तीनों ही जल गए। 31 अक्टूबर की पूरी रात चारों और केवल चीख-पुकार सुनाई देती रहीं।
पीड़ितों के मुताबिक दंगाई हाथ में मिट्टी का तेल, सरिया, हथियार, बल्लम और जहर की बोतलें लेकर घूम रहे थे। दंगाइयों ने लोगों को तलवारों से काट डाला, टायरों से बांधकर जला दिया। पीट-पीटकर मार डाला। इसके अलावा दंगाइयों ने घरों और दुकानों को लूट लिया। जवान लड़कियों को उठाकर ले गए और रेप किया। इस दंगे में दिल्ली में सबसे ज्यादा त्रिलोकपुरी में सिखों का नरसंहार हुआ था। कहा जाता है कि दंगाइयों की अगुवाई में कई नेता शामिल थे। बताया जाता हैकि दंगे के दौरान पेट्रोल और माचिस बांटी जा रही थी ताकि सिखों की बस्तियां खाक हो जाएं।
चार दिन हुआ कत्लेआम
राजधानी दिल्ली में चार दिनों तक कत्लेआम होता रहा। इस दौरान सेना और पुलिस में सामंजस्य भी देखने को नहीं मिला। दो नवंबर को कर्फ्यू लागू किया गया लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। इसके बाद दो मार्च को सेना बुला ली गई। सिखों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए बाल कटवा लिए। लोगों को यह भी नहीं पता चला कि आखिर उनका क्या कसूर है, उनका पूरा परिवार तबाह हो गया। सियासत ने इंसानियत की हत्या करवा दी। चार दिनों के बाद हजारों परिवार उजड़ गए और बस्तियां खाक हो गईं। आज न्याय की तलाश में एक पीढ़ी गुजर गई है। बचे हुए लोग आज भी उस मंजर को याद कर रोने लगते हैं और अपनों की मौत पर अफसोस करते हैं।
दंगे के 14 साल बाद भारत सरकार ने साल 2000 में जस्टिस नानावटी कमीशन बनाया। पांच साल बाद 2005 में आयोग की सफारिश पर सीबीआई ने केस दर्ज किया। 2010 में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, बलवान खोकर, कैप्टन भागमल, किशन कोकर, गिरधारी लाल, महेंद्र याव, संतोष रानी और महासिंह को आरोपी के तौर पर समन भेजा। 2018 में सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। भागमल और गिरधारी लाल को भी उम्रकैद हुई। वहीं किशन खोकर की सजा को घटाकर 10 साल कर दिया गया।